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________________ ८१८ आत्मा नित्य अनित्य परिणामी अपरिणामी साक्षी साक्षी - कर्ता वेदांत 21 11 + श्रीमद राजचन्द्र ३५ जैन : सांख्य योग 11. + वेदांत कहता है कि आत्मा एक ही हैं । जिन कहता है कि आत्मा अनंत है । जाति एक है । सांख्य भी ऐसा ही कहता है । पतंजलि भी ऐसा ही कहता है ! वेदांत कहता है कि यह समस्त विश्व-वंध्यापुत्रवत् है जिन कहता है कि यह समस्त विश्व शाश्वत है । पतंजलि कहता है कि नित्यमुक्त ऐसा एक ईश्वर होना चाहिये । सांख्य उसका निषेध करता है। जिन उसका निषेध करता है । नैयायिक " + + 11 [ संस्मरण-पोथी १, पृष्ठ ८० ] वौद्ध + ३६ सांख्य कहता है कि बुद्धि जड़ है। पतंजलि और वेदांत ऐसा ही कहते हैं । जिन कहता है कि बुद्धि चेतन है । 11 13 + + [संस्मरण-पोथी १, पृष्ठ ८१] ३७ [संस्मरण-पोथी, १, पृष्ठ ८७] श्रीमान महावीरस्वामी जैसोंने अप्रसिद्ध पद रखकर गृहवासका वेदन किया, गृहवाससे निवृत्त होनेपर भी साढ़े बारह वर्ष जितने दीर्घकाल तक मौन रखा । निद्रा छोड़कर विषम परिवह सहन किये, इसका क्या हेतु है ? और यह जीव इस तरह वर्तन करता है तथा इस तरह कहता है, इसका हेतु क्या है ? • जो पुरुष सद्गुरुकी उपासनाके विना अपनी कल्पनासे आत्मस्वरूपका निर्धार करे वह मात्र अपने स्वच्छंद के उदयका वेदन करता है ऐसा विचार करना योग्य है । जो जीव सत्पुरुष गुणका विचार न करे, और अपनी कल्पनाके आश्रयसे वर्तन करें, वह जीव सहजमात्रमें भववृद्धि उत्पन्न करता है, क्योंकि अमर होने के लिये जहर पीता है । ३८ [संस्मरण-पोथी १, पृष्ठ ८९ ] श्री तीर्थंकरने सर्वसंगको महास्रवरूप कहा है, सो सत्य है । ऐसी मिश्र गुणस्थानक जैसी स्थिति कब तक रखना ? जो वात चित्त में नहीं, उसे करना, और जो चित्तमें है उसमें उदास रहना ऐसा व्यवहार किस तरह हो सकता हैं ?... वैश्यवेपसे और निर्ग्रथभाव से रहते हुए कोटि-कोटि विचार हुआ करते हैं ।
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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