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________________ आभ्यंतर परिणाम अवलोकन-संस्मरण पोथी १ ८०९ ... . . . .. .. __ आसनस्थिरता । : सोपयोग- यथासूत्र प्रवृत्ति । . ... ... : .. : . . कायसंयम...... . इंद्रियसंक्षेपता, इंद्रियस्थिरता, वचनसंयम. .., S: मौन, ....::. वचनसंक्षेप, मनःसंयम :.:. . . सोपयोग यथासूत्र प्रवृत्तिः । वचनगुणातिशयता. .. . मनःसंक्षेपता, __मनःस्थिरता। आत्मचिंतन द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव .............. ........ संयमकारण निमित्तरूप द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव। .. द्रव्य-संयमित देह। क्षेत्र-निवृत्तिवाले क्षेत्रमें स्थिति-विहार। ... काल-यथासूत्र काल। .... ...... भाव-यथासूत्र निवृत्तिसाधनविचार ! -. .......: ..... ९ . . . . . : . [संस्मरण-पोथी १, पृष्ठ २१] जो सुखको न चाहता हो वह नास्तिक, या सिद्ध या जड़ है। .... [संस्मरण-पोथी १, पृष्ठ २५] ....यही स्थिति यही भाव और यही स्वरूप। .. .. .... चाहे तो कल्पना करके दूसरी राह ले । यथार्थको इच्छा हो तो यह लें। ... विभंग ज्ञान-दर्शन अन्य दर्शनमें माना गया है। इसमें मुख्य प्रवर्तकोंने जिस धर्ममार्गका बोध दिया है, उसके सम्यक् होनेके लिये स्थात् मुद्रा चाहिये । .: . स्यात् मुद्रा स्वरूपस्थित आत्मा है। श्रुतज्ञानको अपेक्षासे स्वरूपस्थित आत्मा द्वारा कही हुई शिक्षा है। • नाना प्रकारके नय, नाना प्रकारके प्रमाण, नाना प्रकारके भंगजाल, नाना प्रकारके अनुयोग, ये सब लक्षणरूप हैं । लक्ष्य एक सच्चिदानंद है। . दष्टिविष दूर हो जानेके बाद कोई भी शास्त्र, कोई भी अक्षर, कोई भी कथन, कोई भी वचन और कोई भी स्थल प्रायः अहितका कारण नहीं होता। पुनर्जन्म है, जरूर है, इसके लिये मैं अनुभवसे हाँ कहनेमें अचल हैं। इस काल में मेरा जन्म मानें तो दुःखदायक है, और मानूं तो सुखदायक भी है। - संस्मरण-पोयी १, पृष्ठ २६] अब ऐसा कोई पढ़ना नहीं रहा कि जिसे पढ़ देखें। हम जो हैं उसे प्राप्त करे, यह जिसके संगमें रहा है उस संगकी इस काल में न्यूनता हो गयी है।
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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