SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 825
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धोमद राजचन्द्र को दूर करनेल्प उपायकी अपेक्षा रखता है। जिसने मार्ग देखा, जाना, और अनुभव किया है वह नेता हो सकता है। अर्थात् मोक्षमार्गके नेता ऐसा कहकर उसे प्राप्त सर्वज्ञ सर्वदर्शी वीतरागका स्वीकार किया है। इस तरह मोक्षमार्गके नेता इस विशेषणसे जोव, अजीव आदि नवो तत्त्व, छहो द्रव्य, आत्माके अस्तित्व __ आदि छहो पद और मुक्त आत्माका स्वीकार किया है। मोक्षमार्गका उपदेश करनेका, उस मार्गमे ले जानेका कार्य देहधारी साकार मुक्त पुरुप कर सकता है, देहरहित निराकार नही कर सकता ऐसा कहकर आत्मा स्वय परमात्मा हो सकता है, मुक्त हो सकता है, ऐसा देहधारी मुक्त पुरुप ही उपदेश कर सकता है ऐसा सूचित किया है, इससे देहरहित अपौरुषेय वोधका निषेध किया है। 'कर्मरूप पर्वतके भेदन करनेवाले' ऐसा कहकर यह सूचित किया है कि कर्मरूप पर्वतोको तोड़नेसे मोक्ष होता है; अर्थात् कर्मरूप पर्वतोको स्ववीर्य द्वारा देहधारीरूपसे तोड़ा, और इससे जीवन्मुक्त होकर मोक्षमार्गके नेता, मोक्षमार्गके बतानेवाले हुए। पुन. पुन. देह धारण करनेका, जन्म-मरणरूप ससारका कारण कर्म है, उसका समूल छेदन-नाश करनेसे पुन. उन्हे देह धारण करना नही रहता यह सूचित किया है । मुक्त आत्मा फिरसे अवतार नही लेते ऐसा सूचित किया है। विश्वतत्त्वके ज्ञाता'--समस्त द्रव्यपर्यायात्मक लोकालोकके--विश्वके जाननेवाले यह कहकर मुक्त आत्माकी अखड स्वपर-ज्ञायकता सूचित की है । मुक्त आत्मा सदा ज्ञानरूप ही है यह सूचित किया है। 'जो इन गुणोंसे सहित है उन्हे उन गुणोकी प्राप्तिके लिये मैं वदन करता हूँ', यह कहकर परम आप्त, मोक्षमार्गके लिये विश्वास करने योग्य, वन्दन करने योग्य, भक्ति करने योग्य जिसकी आज्ञाम चलनेसे नि सशय मोक्ष प्राप्त होता है, उन्हे प्रगट हुए गुणोंकी प्राप्ति होती है, वे गुण प्रगट होते हैं, ऐसा कौन होता हे यह सूचित किया है। उपर्युक्त गुणोवाले मुक्त परम आप्त वन्दन योग्य होते हैं, उन्होने जो बताया वह मोक्षमार्ग है, और उनको भक्तिसे मोक्षकी प्राप्ति होती है, उन्हे प्रगट हुए गुण, उनकी आज्ञामे चलनेवाले भक्तिमानको प्रगट होते हैं यह सूचित किया है। श्री खेडा, द्वि० आसोज वदो, १९५४ प्र०-आत्मा है ? श्रीमदने उत्तर दिया-हॉ, आत्मा है। प्र०-अनुभवसे कहते है कि आत्मा है ? उ०-हाँ, अनुभवसे कहते है कि आत्मा है । शक्करके स्वादका वर्णन नही हो सकता । वह तो अनुभवगोचर है, इसी तरह आत्माका वर्णन नही हो सकता, वह भी अनुभवगोचर है, परन्तु वह है हो । प्र०-जीव एक है या अनेक है ? आपके अनुभवका उत्तर चाहता हूँ। उ०-जीव अनेक हैं। प्र-जड, कर्म यह वस्तुत है या मायिक है ? उ.-जड, कर्म यह वस्तुतः है, मायिक नहीं है ' प्र०-पुनर्जन्म है ? उ०-हाँ, पुनर्जन्म है। प्र.-वेदातको मान्य मायिक ईश्वरका अस्तित्व आप मानते हैं ? उ०-नही। * श्री मेटाके एक वेदातविद् विद्वान वकील पचदीके लेखक भट्ट पूजाभाई सोमेश्वरका यह प्रसग है। ३८*
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy