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________________ ६४८ श्रीमद् राजचन्द्र वृत्ति जिससे विक्षिप्त न हो ऐसा वर्तन योग्य है । 'कार्तिकेयानुप्रेक्षा' अथवा दूसरा सत्शास्त्र थोड़े वक्त बहुत करके प्राप्त होगा । दुमकाल है, आयु अल्प है, सत्समागम दुर्लभ है, महात्माओके प्रत्यक्ष वाक्य, चरण और आज्ञाक योग कठिन है | इसलिये बलवान अप्रमत्त प्रयत्न कर्तव्य है । आपके समीप रहनेवाले मुमुक्षुओको यथा विनय प्राप्त हो । शाति ८८४ इस दुषमकालमे सत्समागम और सत्संगता अति दुर्लभ है। इसमे परम सत्सग और पर असगताका योग कहाँसे छाजे ? बंबई, श्रावण सुदी ३, १९५ परम पुरुषको मुख्य भक्ति ऐसे सद्वर्तनसे प्राप्त होती है कि जिससे उत्तरोत्तर गुणोकी वृद्धि हो चरणप्रतिपत्ति (शुद्ध आचरणकी उपासना ) रूप सद्वर्तन ज्ञानीकी मुख्य आज्ञा है, जो आज्ञा परम पुरुष की मुख्य भक्ति है । ८८५ उत्तरोत्तर गुणकी वृद्धि होनेमे गृहवासी जनोको सदुद्यमरूप आजीविका व्यवहारसहित प्रवर्तन करना योग्य है । अनेक शास्त्रो और वाक्योका अभ्यास करनेकी अपेक्षा जीव यदि ज्ञानीपुरुषोकी एक एक आज्ञार्की उपासना करे, तो अनेक शास्त्रोसे होनेवाला फल सहजमे प्राप्त होता है । मोहमयी क्षेत्र, श्रावण सुदी ७, १९५५ ८८६ ॐ श्री 'पद्मनदी शास्त्र'की एक प्रति किसी अच्छे व्यक्तिके साथ वसो क्षेत्रमे मुनिश्री को भेजने की व्यवस्था करें | बलवान निवृत्तिवाले द्रव्य-क्षेत्रादिके योगमे आप उस सत्शास्त्रका वारवार मनन और निदिध्यासन करें । प्रवृत्तिवाले द्रव्यक्षेत्रादिमे वह शास्त्र पढ़ना योग्य नही है । 1 जब तीन योगकी अल्प प्रवृत्ति हो, वह भी सम्यक् प्रवृत्ति हो तब महापुरुषके वचनामृतका मनन परम श्रेयके मूलको दृढीभूत करता है, क्रमसे परमपदको प्राप्त करता है । चित्तको विक्षेपरहित रखकर परमशात श्रुतका अनुप्रेक्षण कर्तव्य है ८८७ मोहमयी, श्रावण वदी ३०, १९५५ अगम्य होनेपर भी सरल ऐसे महापुरुषोंके मार्गको नमस्कार सत्समागम निरतर कर्तव्य है । महान भाग्यके उदयसे अथवा पूर्वकालके अभ्यस्त योगसे जीवको सच्ची मुमुक्षुता उत्पन्न होती है, जो अति दुर्लभ है । वह सच्ची मुमुक्षुता बहुत करके महापुरुषके चरण__ कमलकी उपासनासे प्राप्त होती है, अथवा वैसी मुमुक्षुतावाले आत्माको महापुरुषके योगसे आत्मनिष्ठत्व प्राप्त होता है; सनातन अनत ज्ञानीपुरुषो द्वारा उपासित सन्मार्ग प्राप्त होता है । जिसे सच्ची मुमुक्षुता
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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