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________________ ... ३० वाँ वर्ष ६०१ ७६ बादर और सूक्ष्म परिणमन पाने योग्य स्कंधोसे पूरण (बढना) और गलना (घटना, विभक्त होना) स्वभाव जिनका हैं वे पुद्गल कहे जाते है । उनके छ भेद है। जिनसेऽवलोक्य उत्पन्न होता है। FF७७सवं स्कंधोका जो अतिम भेद है वह परमाणु है। वह शाश्वत, शब्दरहित, एक, अविभागी और मूर्त होता है। Verse: जो विवक्षासे मूर्त और चार धातुओका कारण है उसे परमाणु जानना चाहिये। वह परिणामी है, स्वयं अशब्द अर्थात् शब्दरहित है, परंतु शब्दका कारण हैं| FTime : ७९" स्कधस शब्द उत्पन्न होता है। अनत परमाणुओके मिलापके सात-समूहको स्कध' कहा हैं। इन स्कधो' को परस्पर स्पर्श होनेसे, संघर्ष होनेसे निश्चय ही 'शब्द' उत्पन्न होता है. ८०, वह परमाणु नित्य है,, अपने रूप आदि गुणो को अवकाश-आश्रय देता है, स्वय एकप्रदेशी होनेसे एक प्रदेशके बाद अवकाशको प्राप्त नहीं होता, दूसरे द्रव्यको अवकाश (आकाशको तरह) नही देता, स्कूधके भेदका कारण है स्कधुके खडका, कारण है, स्कका कर्ता है, और कालके परिमाण (माप) और सख्या, गिनती)का-हेतु है। काम ! - ८१. जो द्रव्य एक रस, एक वर्ण, एक गध और दो स्पर्शसे युक्त है, शब्दकी उत्पत्तिका कारण है, एकप्रदेशात्मकतासे, शब्दरहित है, स्कंधपरिणमित होनेपर भी उससे भिन्न हैं उसे परमाणु समझे। . ८२ जो इद्रियोसे उपभोग्य है, तथा काया, मन और कर्म आदि'जो जो मूर्त पदार्थ हैं उन सबको पुदेगलद्रव्य समझ , ' ', 70 1 - पी , - ८३ धर्मास्तिकाय अरस, अवर्ण, अगध, अशब्द और अस्पर्श है, सकले लोकंप्रमाण है, अखंडित, विस्तीर्णे और 'असंख्यातेप्रेदेशात्मक द्रव्य है। ' :- . ".' ४४ वह अनत अगुरुलघुगुणोसे निरंतर परिणमित है,"गतिनित्यायुक्त जीव आदिके लिये कारणभूत है, और स्वय अकाय है, अथात् वह द्रव्य किसास उत्पन्न नहीं हुआ है। ..... . ८५ जिस तरह मत्स्यकी गतिमे- जला उपकारक है, उसी तरह जो.जीव और पुद्गलको गतिमे उपकारक है, उसे धर्मास्तिकाय जाने । ...... .. .! . , F re६ जैसे-धर्मास्तिकाय द्रव्य है।वैसे अधर्मास्तिकीय भी द्रव्य है ऐसा' जानें ।' ३ स्थितिक्रियायुक्त जीव और पुद्गलको पृथ्वीको भॉति कारणभूत है। ... , .in , ८७ धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकायके कारण लोक-अलोकका विभाग होता है। ये धर्म और अधर्म द्रव्य दोनो अपने अपने प्रदेशोसे भिन्न भिन्न है। स्वय हलन चलन क्यिासे रहित हैं, और लोकप्रमाण हैं। -..... ८८..धर्मास्तिकाय जीव और पुद्गलको चलाता हे,लऐसी बात नहीं है. जोवं.और पुद्गल गति करते है, उन्हे सहायक है। - ९. जो सब जीवोको तथा शेष पुद्गल आदि द्रव्योको सम्पूर्ण अवकाश देता है, उसे 'लोकाकाश' कहते है। ......... - 'FF' !... ...... ...... . जीत पटगलसमह, धर्म और अधर्म, ये द्रव्य लोकसे अनन्य है; अर्थात लोकमे हैं. लोक्से वाहर नही है,। आकाश लोकसे भी बाहर है, और वह अनंत है, जिसे 'अलोक' कहते हैं। . २२. यदि गति और स्थितिका कारण आकाश होता, तो धर्म और भवन द्रव्यके अभावकै कारण सिद्ध भगवानका अलोकमे भी गमन होता। । . . . . . .
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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