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________________ TETS - I .३० वां वर्ष ५९९ .: ३५ जिनको प्राणधारिता नही है, जिनको प्राणधारिताका सर्वथा अभाव हो गया है, वे-देहसे भिन्न और वचनसे अगोचर जिनको स्वरूप हैं ऐसे सिद्ध" जीव हैं।।' IF , . . " ३६ वस्तूदष्टिंसे देखें तो "सिद्ध पदं उत्पन्न नही होती, क्योकि वह किसी दूसरे पदार्थसे उत्पन्न होनेवाला कार्य नहीं है, इसी तरह वह किसीके प्रति कारणरूप भी नहीं है, क्योकि किसी अन्य सम्बन्धसे उसको प्रवृत्ति नही है।" in shirdi - ३७. यदि मोक्षमे जीवका अस्तित्व ही न हो तो शाश्वत, अशाश्वत, भव्य, अभव्य, शून्य, अशून्य, विज्ञान और अविज्ञान ये भाव किसको हो ?"'" ३८. कोई जीव कर्मके फलका वेदन करते है, कोई जीव कर्मवधकर्तृत्वका वेदन करते हैं, और कोई जीव.मात्र शुद्ध ज्ञानस्वभावका वेदन करते है, इस तरह वेदकभावसे जोवराशिके तीन भेद हैं। ३९स्थावर कायके जीव' अपने अपने किये हुए कर्मोके फलंका वेदन करते हैं, बस जीव'कर्मबंध चेतनाका वेदन करते है, और प्राणरहित अतीद्रिय जीव शुद्धज्ञानचेतनाका वेदन करते हैं। . ४० ज्ञान और दर्शनके भेदसे उपयोग दो प्रकारका है, उसे जीवसे सर्वदा अनन्यभूत समझें। "." ४१ मति, श्रुत, अवधि, मन पर्याय और केवल ये ज्ञानके पाँच भेद है। कुमति, कुश्रुत और विभग ये अज्ञानके तीन भेद है । ये सब ज्ञानोपयोगके भेद है। ४२ चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन और अविनाशी अनंत केवलदर्शन ये दर्शनोपयोगके चार भेद है। ज्ञानी ... ४३. आत्मासे ज्ञानगुणका सम्बन्ध है, और इसीसे आत्मा ज्ञानी है ऐसा नही है, परमार्थसे दोनोमे अभिन्नता हो, है, !.,... .... ४४ यदि ,व्य भिन्न-हो और गुण भी भिन्त हो तो एक द्रव्यके अनुत द्रव्य हो जायें, अथवा द्रव्यका अभाव हो जाये |- -- 7 ४५ द्रव्य और गुण अनन्यरूपसे हैं, दोनोमे प्रदेशभेद नही है।। द्रव्यके नाशसे., गुणका नाश हो जाता है और गुणके नाशसे,गव्यका नाश हो जाता है ऐसा उनमे एकत्व है,m . ४६ व्यपदेश (कथन), सस्थान, सख्या और विषय इन चार प्रकारको विवक्षाओसे द्रव्यगुणके, अनेक भेद हो सकते है, परन्तु परमार्थनयसे ये चारो अभेद है। . . . . ४७ जिस तरह यदि पुरुषके पास धन हो तो वह धनवान कहा जाता है, उसी तरह आत्माके पास ज्ञान है, जिससे वह ज्ञानवान कहा जाता है। इस तरह भेद-अभेदका स्वरूप है, इसे तत्त्वज्ञ-दोनो प्रकारसे जानते है। १ ४८ यदि आत्मा और ज्ञानका सर्वथा भेद हो तो दोनो-ही-अचेतन, हो जायें ऐसा वीतराग सर्वका सिद्धात है। ...४९: ज्ञानका सम्बन्ध होनेसे आत्मा ज्ञानी होता है , ऐसा,माननेसे . आत्मा और, अज्ञान-जडत्वका ऐक्य होनेका प्रसग आता है। " . . . ५० समवर्तित्व समवाय है । वह अपृथक्भूत और अपृथक् सिद्ध है, इसलिये वीतरागोंने द्रव्य और गुणके सम्बन्धको अपृथक् सिद्ध कहा-है। - -- -.. ५१. वर्ण, रस: गध और स्पर्श ये चार विशेष (गुण) परमाणु द्रव्यसे अभिन्न है। व्यवहारसे वे पुद्गलद्रव्यसे भिन्न कहे जाते है। : ।।, ५२. इसी तरह दर्शन.,और ज्ञान भी जीवसे अनन्यभूत हैं । व्यवहारसे. उनका आत्मामे भेद कहा जाता है।
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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