SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 715
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५९६ श्रीमद् राजचन्द्र उस निर्जराका क्रम कहते हैं ।, मिथ्यादर्शनमे रहता हुआ भी थोडे - समयमे उपशम सम्यग्दर्शन पानेवाला है, ऐसे जीवकी अपेक्षा असयत सम्यग्दृष्टिको असख्यातगुण निर्जरा होती है, उससे असख्यातगुण निर्जरा देशविरतिको होती है, उससे असख्यातगुण निर्जरा सर्वविरति ज्ञानीको होती है, उससे . . . . . . . अपूर्ण, ।' . ' श ___७६४ . . . . . . , स० १९५३ . ___ हे जीव | इतना अधिक प्रमाद क्या ?:- . .. ... ., 775 शुद्ध आत्मपदकी प्राप्तिके लिये वीतराग सन्मार्गकी उपासना कर्तव्य है। सर्वज्ञदेव निर्ग्रन्थ गुरु . शुद्ध आत्मदृष्टि होनेके अवलवन हैं। . . दया मुख्यधम , , , , . ।। श्री गुरुसे सर्वज्ञके अनुभूत शुद्धात्मप्राप्तिका उपाय जानकर, उसका रहस्य ध्यानमे लेकर आत्मप्राप्ति करे। यथाजातलिंग सर्वविरतिधर्म । द्वादशविध देशविरतिधर्म । '.... . . द्रव्यानयोग ससिद्ध-स्वरूपदष्टि होनेसे, . . . . . . . . . . करणानुयोग सुसिद्ध-सुप्रतीतदष्टि होनेसे. .. .:;... , -: चरणानुयोग सुसिद्ध-पद्धति विवाद शात करनेसे; - न रसी - . . . - धर्मकथानुयोग सुसिद्ध-बालबोधहेतु समझानेसे। ..... . . ७६५ . . . . . . . -स० १९५३ गरु ' मोक्षमार्गका अस्तित्व -प्रमाण । - निर्जरा . ' -:- , - आगम आप्त नया वध संयम अनेकात । मोक्ष . , , वर्तमानकाल धर्म लोक जीन - गणस्थानक धर्मकी योग्यता 1. अलोक ' . ' , कर्म अहिंसा चारित्र करणानयोग ।' जीव न सत्य 1107१, } , ' " चरणानुयोग कर अजीव असत्य द्रव्य 5 धर्मकथानुयोग पुण्य ।।। - ...' - 7 ब्रह्मचर्य 7-11 . गुण ।' मुनित्व पाप अपरिग्रह । पर्याय गृहधर्म की आस्रव ; . आज्ञा : ..|| - , ससार, 7, 1. -", परिषह सवर व्यवहार । एकेन्द्रियका अस्तित्व ; - उपसर्ग: FI. ---. . . .' T IS MES
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy