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________________ [ ५७ ] ८३९ ६८ गुणातिशयता क्या ?, केवलज्ञानमें आहार, ७ सर्व द्रव्यसे मुक्त स्वरूपका अनुभव, निहार आदि क्रियायें किस तरह? ८२६ सम्यग्दर्शनी और । सम्यक्चारित्रीको ६९, ज्ञानके भेद । - - ८२७ उद्बोधन ८३४ .७० परमावधिके बाद केवलज्ञान, द्रव्योकी . ८ दु ख और उसका बीज आदि, कर्मके ... गुणातीतता; केवलज्ञानकी-निर्विकल्पता ८२७ पाँच कारण, उसके अभावका क्रम ८३५ ७१, अस्तित्व, वध, अमूर्तता, पुद्गल और ९ ध्यान 'और स्वाध्याय, कैसी दशाका जीवका सयोग, धर्मादिकी क्षेत्रव्यापिता, सेवन करते केवलज्ञान उत्पन्न हो ८३५ द्रव्यस्वरूप, केवलज्ञान और अनतता १० सहजात्मस्वरूप लक्षी विचारश्रेणि ८३६ अनादिताको शकायें ! ८२७ ११ अप्रमत्त होनेके लिये प्रतीति करने योग्य ; ७२ सर्वप्रकाशकता और सर्वव्यापकता, आत्मा भाव ८३६ सम्बन्धी विचारणीय विषय ८२८ १२ तीव्र वैराग्यसे लेकर अचित्य सिद्धस्वरूप ७३-७४ मार्गप्रवर्तनसम्बन्धी विचारणा ८२८ ' 'तकके विचार तकके विचार ८३६ ७५ 'सोह' आश्चर्यकारक गवेषणा, आत्म- . । १३ सयम, समाधान, पद्धति और वृत्ति ८३७ ____ ध्यान सम्बन्धी ऊहापोह ८२९ |: १४-१५ सत्य धर्मके उद्धारसम्बन्धी ८३८ ७६ आत्माका असख्यातप्रदेश-प्रमाणत्व . ८२९ १६ नयदृष्टि विचार ८३८ ७७ अमूर्तत्व, अनतत्व, मूर्तामूर्तत्व और बघ १७ मैं असग शुद्ध चेतन हूँ।" अनुभवस्वरूप । आदि ७८ केवलज्ञान और ब्रह्म १८ चैतन्य जिनप्रतिमा हो, ८३९ ७९ जिनके अभिमतसे आत्मा १९ अतराय करनेवाले काम' आदिको ८० मध्यम परिमाणका नित्यत्व, कर्मबंधका '' - सम्बोधन ८३९ हेतु, द्रव्य और गुण, अभन्यत्व धर्मास्ति २० सम्यग्दर्शन, जिनवीतराग आदिको भक्तिसे काय आदिका वस्तुत्व, सर्वज्ञता ८३० * नमस्कार ८३९ ८१ वेदातके आत्मादि सम्बन्धी निरूप ८३० २१ उपासनीय समाधिमार्ग ८४० ८२-८३ जनमार्ग ८३१ २२ बघ, कर्म, मोक्ष ८४० ८४ मोहमयीसबधी उपाधिकी अवधि ८३२ २३ मोक्ष और मोक्षमार्गरूप सम्यग्दर्शनसे ८५ कुछ स्वविचार १२वें गुणस्थानकपर्यंत दशाओके लक्षण ८४० ८६ देव, गुरु, धर्म ८३२ संस्मरणपोयो-३ ८७ जिनसदृश ध्यानसे तन्मयात्मस्वरूप कब १ सर्वज्ञ, जिन, वीतराग, सर्वज्ञ है, जीवका होऊँगा? ८३३ ज्ञानसामर्थ्य सपूर्ण ८८ अपूर्वसयम प्रगट करनेके लिये ८३३ २ सर्वज्ञपद श्रवण-पठन-विचार करने योग्य सस्मरणपोयी-२ __ और स्वानुभवसे सिद्ध करने योग्य ८४१ १ सहज शुद्ध आत्मस्वरूप ८३३ ३ देव, गुरु, धर्म २ सर्वज्ञपदका ध्यान करें ८३३ ४ प्रदेश, समय, परमाणु, द्रव्य, गुण, ३ सत्पुरुषोको नमस्कार पर्याय; जड, चेतन ४ जिनतत्त्वसक्षेप ८३३ ५ मूल द्रव्य और पर्याय ८४२ ५ मुख्य आवरण, मुमुक्षुता आदि उत्पन्न ६ दुःखका आत्यतिक अभाव मोक्ष सम्यकैसे हो? ८३४ ज्ञान-दर्शन-चारित्र और मोक्ष. सकर्म ६ जीवके वघनके मुख्य हेतु ८३४ जीव, भावकर्म, तत्त्वार्थप्रतीति ८४२ ८३२ ८४१ ८३३ ८४२
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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