SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२ सिद्धकी अवगाहना, सिद्धात्माकी ज्ञाय- । २९ व्रतसंवधी - ६८५ कता और भिन्न-भिन्न व्यक्तित्व, गोमटे ३० मोहकषाय सबधी . ६८५ श्वरकी प्रतिमा, निदान बाँचना अयोग्य, ३१ आस्था तथा श्रद्धा, ज्ञानीका अवलबन ६८६ वसुदेवका दृष्टात - ६७९ ३२ 'जे अबुद्धा महाभागा , मिथ्यादृष्टिको १३ अवगाहनाका अर्थ - - - - ६८० क्रिया सफल, सम्यग्दृष्टिकी क्रिया अफल ६८६ १४ समतासे निर्जरा, ज्ञानीका मार्ग सुलभ, ३३ नित्यनियम - - ६८७ पाना दुर्लभ । ६८० ३४ परमार्थसत्य और व्यवहारसत्य ६८७ १५ श्री सत्श्रुत । - ६८१ ३५ सत्पुरुष अन्याय नही करते, आत्मा अपूर्व १६ ज्ञानीको पहचानें, आज्ञाका आराधन करें ६८१ वस्तु, जागृति और पुरुषार्थ, स्वच्छदसे १७ लोकभ्रातिका कारण, जीव-अजीवका भेद ६८१ ध्यान, उपदेश आदि, आत्मा और देह, १८ 'इनॉक्युलेशन' महामारीकी टीका ६८२ 'सुदर विलास' उपदेशार्थ, छ दर्शनोपर १९ प्रारब्ध और पुरुषार्थ . ६८२ दृष्टात, वीतरागदर्शन त्रिवैद्य जैसा ६८९ २० भगवद्गीतामें पूर्वापर विरोध, उसपर ३६ सन्यासी, गोसाई, यति, किस दोषसे समभाष्य और टीकाएँ, विद्वत्ता और ज्ञान, कित नही होता ? मुनि और व्याख्यान, हरीभद्रसबधी मणिभाईका अभिप्राय ६८२ कपायके सामने युद्ध, क्षत्रिय भावसे वर्तन २१ क्षयरोगका मुख्य उपाय - ६८२ पूजामें पुष्प, मुमुक्षुके लिये साधन, २२ 'प्रशमरस निमग्न ' देव कौन ? दर्शन 'सिज्झति', 'वुज्झति आदिका रहस्य ६९० योग्य मुद्रा कौनसी ? 'स्वामी कार्तिकेया ३७ अज्ञानतिमिरान्धाना का अर्थ, मोक्षनुप्रेक्षा' वैराग्यका उत्तम ग्रन्थ, कार्तिक मार्गस्य नेतार ' का विवेचन ६९१ स्वामी ६८३ ___ ३८ आत्मा, जड आदि सबंधी प्रश्नोत्तर ६९२ २३ ‘षड्दर्शनसमुच्चय और योगदृष्टि समु ३९ कर्मकी मूल आठ प्रकृति, चार घातिनी, च्चय' का भाषातर, , 'योगशास्त्र' का । चार अघातिनी मगलाचरण-नमो दुर्वाररागादिवैरिवार ' ४० मूर्छाभाव और ज्ञानकी न्यूनता, ज्ञानीनिवारिणे, सच्चा मेला ६८३ का ससारमें वर्तन २४ 'मोक्षमाला'के पाठ, श्रोता-चाचकमें। ४१ चार गोलोंके दृष्टातसे जीवके चार भेद ६९३ अपने आप अभिप्राय उत्पन्न होने दें, - | ९५७ उपदेश छाया 'प्रज्ञाववोध के मनके, परम सत्श्रुतके १ मूल ज्ञानसे वचित कर देनेकी भावना, प्रचाररूप योजना ' ६८३ ज्ञानीपुरुषोको भी सर्वथा असगता श्रेय२५ श्री 'शातसुधारस'का विवेचनरूप भाषातर ६८४ स्कर, निर्वस परिणाम मनुष्यभव निर२६ देवागमनभोयान' मद्देवका महत्त्व, श्री र्थक जाने के कारण, झूठ बोलकर सत्सगमें समतभद्रसूरि, लोक कल्याण करते हुए । आना अनावश्यक ध्यान रखने योग्य " ६८४ । २ स्व-उपयोग और पर-उपयोग, सिद्धातकी २७ मन.पर्यायज्ञान किस तरह. प्रगट होता । रचना, ज्ञानीके आज्ञाकारी और शुष्कहै ? उसका विषय ज्ञानीको स्त्री आदि प्रसग, प्राप्त और २८ मोहनीयकर्मके त्यागका क्रामक अभ्यास, आप्त, पारमार्थिक और अपारमार्थिक गुरु ६९६ यथासभव पाँच इद्रियोके विषयोको ३ तीन प्रकारके ज्ञानीपुरुष, सत्पुरुषकी पहशिथिल करना, प्रवृत्तिकी आडमे चान, सद्वृत्ति और सदाचारका सेवन, निवृत्तिका विचार न करना एक बहाना ६८५ । । याचाराग आदि नियमित पढ़ना, सच्चा
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy