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________________ श्रीमद् राजचन्द्र माँगता हूँ, और उन्हे क्षमा करानेके योग्य हूँ । आपका, किसी भी प्रकारसे उन अपराधादिको ओर उपयोग न हो तो भी अत्यन्तरूपसे, हमारी वैसी पूर्वकालसम्बन्धी किसी प्रकारसे भी सम्भावना जानकर अत्यन्त रूपसे क्षमा देने योग्य आत्मस्थिति करनेके लिये इस क्षण लघुतासे विनती है । अभी यही । ४०५ बबई, भादो सुदी १०, गुरु, १९४८ ___ इस क्षणपर्यंत आपके प्रति किसी भी प्रकारसे पूर्वादि कालमे मन, वचन, कायाके योगसे जो जं अपराधादि कुछ हुए हो उन सवको अत्यन्त आत्मभावसे विस्मरण करके क्षमा चाहता हूँ। भविष्यवे किसी भी कालमे आपके प्रति वैसा प्रकार होना असम्भव समझता हूँ, ऐसा होनेपर भी किसी अनुपयोग भावसे देहपर्यत वेसा प्रकार क्वचित् हो तो इस विषयमे भी इस समय अत्यन्त नम्र परिणामसे क्षम चाहता हूँ, और उस क्षमारूप भावका, इस पत्रको विचारते हुए, वारवार चिन्तन करके आप भी, हमारे प्रति पूर्वकालके उन सब प्रकारका विस्मरण करने योग्य हैं। कुछ भी सत्सगवार्ताका परिचय बढे, वैसा यत्न करना योग्य है । यही विनती । रायचद। ४०७ ४०६ बबई भादो सुदी १२, रवि, १९४८ परमार्थके शीघ्र प्रगट होनेके विपयमे आप दोनोका आग्रह ज्ञात हुआ, तथा व्यवहार चिंताके विषयमे लिखा, और उसमे भी सकामताका निवेदन किया, वह भी आग्रहरूपसे प्राप्त हुआ है । अभी तो इन सबके विसर्जन करनेरूप उदासीनता रहती है, और उस सबको ईश्वरेच्छाधीन करना योग्य है । अभी ये दोनो वातें हम फिर न लिखे तब तक विस्मरण करने योग्य हैं। ___ यदि हो सके तो आप और गोशलिया कुछ अपूर्व विचार आया हो तो वह लिखियेगा। यही विनती। बंबई, भादो वदी ३, शुक्र, १९४८ शुभवृत्तिसंपन्न मणिलाल, भावनगर । वि० यथायोग्यपूर्वक विज्ञापन । आपका एक पत्र आज पहुँचा है, और वह मैंने पढा है । यहाँसे लिखा हुआ पत्र. आपको मिलनेसे जो आनन्द हुआ उसका निवेदन करते हुए आपने अभी दीक्षासम्बन्धी वृत्ति क्षुभित होनेके विषयमे लिखा, वह क्षोभ अभी योग्य है। ___ क्रोधादि अनेक प्रकारके दोपोके परिक्षीण हो जानेसे, ससारत्यागरूप दीक्षा योग्य है, अथवा तो किसी महान पुरुषके योगसे यथाप्रसग वैसा करना योग्य है । उसके सिवाय अन्य प्रकारसे दीक्षाका धारण करना सफल नही होता । और जीव वैसी अन्य प्रकारकी दीक्षारूप भ्रातिसे ग्रस्त होकर अपूर्व कल्याणको चूकता है, अथवा तो उससे विशेष अतराय आये ऐसे योगका उपार्जन करता है। इसलिये अभी तो आपके उस क्षोभको योग्य समझते हैं। आपकी इच्छा यहाँ समागममे आनेकी विशेष है, इसे हम जानते हैं, तथापि अभी उस योगकी इच्छाका निरोध करना योग्य है, अर्थात् वह योग होना अशक्य है, और इसकी स्पष्टता पहले पत्रमे लिखी है, उसे आप जान सके होगे। इस तरफ आनेकी इच्छामे आपके बुजुर्ग आदिका जो निरोध है उस निरोधका अतिक्रम करनेकी इच्छा करना अभी योग्य नहीं है। हमारा उस प्रदेशके पाससे कभी जानाआना होगा तव कदाचित् समागमयोग होने योग्य होगा, तो हो सकेगा ।
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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