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________________ २४ वॉ वर्ष २८३ मार्गं सम्बन्धी आपकी ओरसे मेरी दूसरी दशा होनेतक स्मरण न दिलाया जाये, ऐसा योग्य है । यद्यपि मै आपसे भिन्न नही हूँ, तो आप सर्वथा निराकुल रहे । आपसे परमप्रेम है, परन्तु निरुपायता मेरी है । २३५ बम्बई, चैत्र सुदी १४, गुरु, १९४७ सविस्तर पत्रमेसे अमुक थोडा भाग छोडकर शेष भाग परमानन्दका निमित्त हुआ था । जो थोडा भाग बाधकर्तारूप है, वह ईश्वरानुग्रहसे आपके हृदयसे विस्मृत होगा ऐसी आशा रहा करती है । ज्ञानीकी परिपक्व अवस्था ( दशा ) होनेपर सर्वथा राग-द्वेषको निवृत्ति हो जाती है ऐसी हमारी मान्यता है, तथापि इसमे भी कुछ समझने जैसी बात है, यह सच है । प्रसगसे इस विषयमे लिखूँगा । ईश्वरेच्छाके अनुसार जो हो सो होने देना यह भक्तिमान के लिये सुखदायक है । २३६ बम्बई, चैत्र सुदी १५, गुरु, १९४७ सुज्ञ भाई श्री अबालाल, यहाँ कुशलता है । आपका कुशलपत्र प्राप्त हुआ । रतलामसे लौटते हुए आप यहाँ आना चाहते है, उस इच्छामे मेरो सम्मति हैं । वहाँसे विदा होनेका दिन निश्चित होनेपर यहाँ दुकानपर पत्र लिखियेगा । आप जब यहाँ आयें तब, आपका हमारेमे जो परमार्थं प्रेम है वह यथासभव कम ही प्रगट हो ऐसा कीजियेगा । तथा निम्नलिखित बाते ध्यानमे रखेंगे तो श्रेयस्कर है । १ मेरी अविद्यमानतामे श्री रेवाशंकर अथवा खीमजी से किसी तरह की परमार्थ विषयक चर्चा नही करना (विद्यमानता अर्थात् मैं पास बैठा हूँ तब ) | २ मेरी विद्यमानतामे उनसे गभीरतापूर्वक परमार्थ विषयकी चर्चा हो सके तो जरूर करे, कभी रेवाशकरसे और कभी खीमजीसे । ३ परमार्थमे नीचे लिखी बाते विशेष उपयोगी है (१) पार होनेके लिये जीवको पहले क्या जानना चाहिये ? (२) जीवके परिभ्रमण होनेमे मुख्य कारण क्या ? (३) वह कारण कैसे दूर हो ? (४) उसके लिये सुगमसे-सुगम अर्थात् अल्पकालमे फलदायक हो ऐसा उपाय कौनसा है ? (५) क्या ऐसा कोई पुरुष होगा कि जिससे इस विपयका निर्णय प्राप्त हो सके ? इस कालमे ऐसा पुरुष हो सकता है ऐसा आप मानते है ? और यदि मानते है तो किन कारणोसे ? ऐसे पुरुपके कोई लक्षण होते हैं या नही ? अभी ऐसा पुरुष हमे किस उपाय से प्राप्त हो सकता है? (६) यदि हमारे सबंधी कोई प्रसग आये तो पूछना कि 'मोक्षमार्ग' की इन्हे प्राप्ति है, ऐसी नि शकता आपको है ? और है तो किन कारणोसे ? ये प्रवृत्तिवाली दशामे रहते हो, तो पूछना कि इस विषय मे आपको विकल्प नही आता ? इन्हे सर्वथा नि स्पृहता होगी क्या ? किसी तरह सिद्धियोग होगे क्या ? (७) सत्पुरुपकी प्राप्ति होनेपर जीवको मार्ग न मिले, ऐसा सभव हे क्या ? ऐसा हो तो इसका क्या कारण ? यदि जीवकी 'अयोग्यता' बतानेमे आये तो वह अयोग्यता किस विपयकी ? (८) खीमजीसे प्रश्न करना कि क्या आपको ऐसा लगता है कि इस पुरुषके सगसे योग्यता प्राप्त होनेपर इससे ज्ञानप्राप्ति हो सकती है ?
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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