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________________ २०वा वर्ष १६३ 'कालज्ञान' इस नामका अन्य दर्शनमे आयुका बोधक उत्तम ग्रथ है और उसके सिवाय 'आदि' शब्दसे दूसरे ग्रन्थोका भी आधार लिया है, ऐसा कहा । आगम अनुमान-इन शब्दोंसे यह बताया कि जैनशास्त्रमे ये विचार गौणतासे प्रदर्शित किये है, इसलिये मैंने अपनी दृष्टिसे जहाँ जहाँ जैसा बोध लिया वैसा प्रर्शित किया है। मेरी दृष्टिसे अनुमान है, क्योकि मै आगमका प्रत्यक्ष ज्ञानी नहीं हूँ, यह हेतु है। गुरु करुना-इन शब्दोसे यह कहा कि कालज्ञान और आगमके अनुमानसे कहनेकी मेरी समर्थता न होती, क्योकि वह मेरी काल्पनिक दृष्टिका ज्ञान था, परन्तु उस ज्ञानका अनुभव करा देनेवाली जो गुरु महाराजको कृपादृष्टि स्वरका उदय पिछानिये, अति थिरता चित्त धार। ताथी शुभाशुभ कीजिये, भावि वस्तु विचार ॥ चित्तकी अतिशय स्थिरता करके भावी वस्तुका विचार करके "शुभाशुभ" यह, अति थिरता चित्त धार--इस वाक्यसे यह सूचित किया कि चित्तकी स्वस्थता करनी चाहिये ताकि स्वरका उदय यथायोग्य हो। शुभाशुभ भावि वस्तु विचार-इन शब्दोसे यह सूचित किया कि वह ज्ञान प्रतीतभूत है, अनुभव कर देखें। अब विषयका प्रारभ करते हैं नाड़ी तो तनमे घणी, पण चौबीस प्रधान। तामे नव पुनि ताहुमे, तीन अधिक कर जान ॥२ शरीरमे नाड़ियाँ तो बहुत है, परन्तु उन नाडियोमे चौबीस मुख्य है, और उनमे नौ मुख्य हैं और उनमे भी तीनको तो विशेष जानें। अब उन तीन नाडियोंके नाम कहते है इंगला पिंगला सुषुमना, ये तीर्नुके नाम । भिन्न भिन्न अब कहत हूँ, ताके गुण अरु धाम ॥ इगला, पिंगला, सुषुम्ना ये तीन नाडियोंके नाम है। अब उनके भिन्न भिन्न गुण और रहनेके स्थान कहता हूँ। अल्पाहार निद्रा वश करे, हेत स्नेह जगथी परिहरे। लोकलाज नवि धरे लगार, एक चित्त प्रभुथी प्रीत धार ॥ ___ अल्प आहार करनेवाला, निद्राको वशमे करनेवाला अर्थात् नियमित निद्रा लेनेवाला, जगतके हेतप्रेमसे दूर रहनेवाला, (कार्यसिद्धिके प्रतिकूल ऐसे) लोककी जिसे तनिक लज्जा नही है, चित्तको एकाग्र करके परमात्मामे प्रीति रखनेवाला । आशा एक मोक्षको होय, दूजो दुविधा नवि चित्त कोय । १ पद्य संख्या १० इसका पूग अर्थ यह है-चित्तको अति स्थिर करके स्वरके उदय एव उस्तको पहचानें । फिर उसके आधारसे भावी वस्तुका विचार करके शुभाशुभ कार्य कीजिये । २ पद्य सख्या ११ ३ पद्य सख्या १२ ४. पद्य सस्या ८२
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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