SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 231
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४८ श्रीमद् राजचन्द्र ३७१. नग्न नही नहाऊँ । ३७२ महीन कपड़े नही पहनूं । ३७३. अधिक अलंकार नही पहनूं । ३७४. अमर्यादासे नही चलूँ । ३७५. तेज आवाजसे नही बोलं । ३७६. पतिपर दबाव नही रखूं । (स्त्री) ३७७. तुच्छ संभोग नही भोगना । (गृ०, उ० ) ३७८. खेदमे भोग नही भोगना । ३७९ सायंकालमे भोग नही भोगना । ३८०. सायकालमे भोजन नही करना । ३८१. अरुणोदयमे भोग नही भोगना । ३८२ ऊँघमेसे उठकर भोग नही भोगना । ३८३. ऊँघमेसे उठकर भोजन नही करना । ३८४. शौचक्रियासे पहले कोई क्रिया नही करना । ३८५ क्रियाकी कोई आवश्यकता नही है । (परमहस ) ३८६ ध्यानके बिना एकात मे नही रहूँ । (मु०, गृ०, ब्र०, उ०, प० ) ३८७. लघुशकामे तुच्छ नही होॐ । ३८८. दीर्घशकामे समय नही लगाऊँ । ३८९. प्रत्येक ऋतुके शरीरधर्म की रक्षा करू । (गृ०) ३९०. मात्र आत्माकी ही धर्मकरनीकी रक्षा करूँ । (मु०) ३९१ अयोग्य मार, बधन नही करू । ३९२. आत्मस्वतत्रता नही खोऊ । (मु०, गृ०, ब्र०) ३९३ बधनमे पड़ने से पहले विचार करू । (सा० ) ३९४ पूर्वकृत भोगको याद नही करू । ( मु०, गृ०) ३९५. अयोग्य विद्या नही सार्धं । (मु०, गृ०, ब्र०, उ० ) ३९६. बोध भी नही दूँ । ३९७ अनुपयोगी वस्तु नही लूँ । ३९८. नही नहाऊँ । (मु० ) ३९९. दातुन नही करू" । ४०० संसार-सुख नही चाहूँ । ४०१. नीति बिना संसारका भोग नही करू" । (गृ०) ४०२ प्रकट रूपमे कुटिलतासे भोगका वर्णन नही करूँ |- (गृ०) ४०३. विरहग्रंथ नही रचूं | ( मु०, गृ०, ब्र०) ४०४ अयोग्य उपमा नही दूँ । (मु०, गृ०, ब्र०, उ० ) ४०५. स्वार्थके लिये क्रोध नही करूं । (मु०, गृ० ) ४०६. वादयश प्राप्त नही करूँ । ( उ० ) ४०७. अपवादसे खेद नही करू । ४०८. धर्मद्रव्यका उपयोग नही कर सकूं। (गृ०) 1 EL
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy