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________________ १४६ श्रीमद राजचन्द्र २९५ स्थितिका गर्व नही करूँ । (गृ०, मु.) २९६ स्थितिका खेद नही करूँ । २९७ मिथ्या उद्यम नही करूं। २९८ अनुद्यमी नही रहूँ। २९९. खोटी सलाह नहीं हूँ। (गृ०) ३०० पापी सलाह नही हूँ। ३०१. न्यायविरुद्ध कृत्य नही करूं । (२-३) ३०२ किसीको झूठी आशा नही दूं। (गृ०, मु०, ब्र०, उ०) ३०३. असत्य वचन नही हूँ। ३०४. सत्य वचनका भग नही करू। ३०५ पांच समितिको धारण करूं । (मु०) ३०६ अविनयसे नहीं बैठू।। ३०७ बुरे मण्डलमे नही जाऊँ। (गृ०, मु०) ३०८ वेश्याकी ओर दृष्टि नही करूं । ३०९ इसके वचनोका श्रवण नही करूँ। ३१० वाद्य नही सुनूं । ३११ विवाह विधि नही पूछ् । ३१२ इसकी प्रशसा नही करूं। ३१३. मनोरममे मोह नही मानूं। ३१४ कर्माधर्मी नही करूँ । (गृ०) ३१५. स्वार्थसे किसीकी आजीविकाका नाश नही करूं । (गृ०) ३१६. वधबंधनकी शिक्षा नही करूँ। ३१७ भय तथा वात्सल्यसे राज्य चलाऊँ । (रा०) ३१८ नियमके बिना विहार नही करूं । (मु०) ३१९ विषयकी स्मृति होनेपर ध्यान किये बिना न रहूँ। (मु०, गृ०, ब्र०, उ०) . ३२० विषयकी विस्मृति ही करूँ। (मु०, गृ०, ७०, ८०) ३२१. सर्व प्रकारकी नीति सीखू । (मु०, गृ०, ब्र०, उ०) ३२२ भयभाषा नही बोलू। ३२३ अपशब्द नही बोलं। ३२४. किसीको नही सिखाऊँ । ३२५. असत्य मर्मभाषा नही बोलू। ३२६ लिया हुआ नियम कर्णोपकणिकाकी रीतिसे नही तोडूं। । ३२७ पीठचौर्य नही करूँ। ३२८ अतिथिका तिरस्कार नही करूँ । (गृ०, उ०) । ३२९ गुप्त बातको प्रसिद्ध नही करूं । (गृ०, उ०) ३३० प्रसिद्ध करने योग्यको गुप्त नही रखू। ३३१ उपयोगके विना द्रव्य नही कमाऊँ । (गृ०, उ०,७०) ३३२ अयोग्य करार नही कराऊँ । (गृ०)
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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