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________________ संस्कृत साहित्य में भास का स्थान बाला व साविदितपञ्चशवप्रपञ्चा तन्वी च सा स्तनभरोपचितानन्याष्टिः । लज्जा समुद्वहति सा सुग्नावसाने हा काऽपि सा, किमिव किं कथयामि तस्याः ! दुःखाते मयि दुःखिता भवति या हृष्ट प्रहृष्टा तथा दीने न्यमुपैति शेषपहले पथ्यं बचो भाषते । काल वेत्ति, कथा: करोति निपुणा, सत्संस्तवै ज्यति । भार्या मन्त्रिवर. सला परिजनः सैका बहुस्वं गता ।। ____ कोई दस श्लोक और हैं जो मास के कहे जाते हैं और जो गारङ्गधर-पति, सदुक्तिकर्णामृत और सूक्तिमुक्तावली में पाए हैं। इन इधर उधर के उद्धरणों के सिवा मास के बारे में और कुछ उलूम नहीं था। जब पं० गणपति शास्त्री ने १६१२ ई० में रह नाटकों का पता लगाया तब भारत के बारे में बहुत कुछ मालूम हुआ। तेरह नाटक त्रिवेन्द्र पुस्तकमाला के अन्तर्गत प्रकाशित हो चुके है। ० कोथ, जैकोबी, स्टेनकोजो, लैकाटे, विटरनिटज प्रादि जैसे विद्वानों इन तेरह के तेरह नाटकों को भास की रचना बताया है। वस्तुतः १ मिलाइये Wordsworth: A perfect woman nobly planned. To warm, to comfort and command.' फिर मिलाइये Pope Thou wert my guide, philosopher and friend. २ इन तेरह नाटकों को चार भागों में विभक्त किया जा सकता है:(क) उदयन की कथा वाले-प्रतिज्ञायौगन्धरायण, स्वप्नवासवदत्तम्। (ख) महाभारत पर आश्रित-ऊरुभंग ( संस्कृत में अवेला दुःखार पटक), बाल चरित, दूतघटोत्कच, दूतवाक्य, कर्णभार, मध्यमव्यायोग, वरात्र। (ग) रामायया पर अवलम्बित- अभिषेक नाटक, प्रतिमा नाटक (घ) कल्पनामूलक अविमारक और चारुदत्त ।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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