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________________ सस्कृत-साहित्य का इतिहास विजयों का तनिक भी उल्लेख नहीं मिलता। अतः यह ऐतिहासिक श्राव्यान अधिक से अधिक ३३७ ई. तक बढ़ पाता है। क्योंकि वायु, ब्रह्माण्ड और मत्स्य पुराण भविष्य पुराण की असली सामग्री पर अचल मियत हैं अत यह परिहाल निकलता है कि भविष्य पुराण किसी न किसी रूप में ईसा को तृतीय शताब्दी के अन्त से पहले-पहले अवश्य बन चुका होगा। मत्स्य ने इसपे तृतीय शताब्दी के चतुर्थ पाद में सामग्री प्रास की तथा वायु और ब्रह्माण्ड ने चतुर्थ शताब्दी के प्रारम्भिक भाग में, जबकि ये वर्णन प्रारम्भिक गुश राजाओं के वर्णनों को अपने में मिलाकर पर्यात बढ़ चुके थे। (३) कलियुग' की बुराइयों के वर्णनों तथा ऐतिहासिक ज्योतिषिक विशेष-निशेष वर्णनों से भी ऊपर दिये हुए परिणाम की पुष्टि होती है। (४) मून्नग्रन्यीय विशेषताएं भी उक्त परिणाम का समर्थन करती है। (१)चिन्तामणि विनायक देय ने वायुपुराण गत वक्ष्यमाण श्लोक की ओर ध्यान खींचा है :-- अनुगंगे प्रयागं च साकेतं मगधस्तथा । एताअनपदान् सर्वान् भोयन्ते गुप्तवंशजाः ।। यह श्लोक उस अवस्था का परामर्श करता है, जब ५०० ई. के. बाद गुप्त शक्ति का अन्त हुआ। () विष्णु पुराण निश्चय ही चायु के बाद का है क्योंकि इसमें वर्णन और भी आगे बढ़ गया है। यह किलकिल के यवन राजाओं का वर्णन करता है जो बान्ध्र देश में 5 वीं और 8 वीं शताब्दी में राजप करते थे । इससे प्रकट होता है कि कम से कम इस शताब्दी तक पुराणों में प्रक्षेप होते रहे । १. विस्तृत युक्तियों के लिए पार्जिटर की 'कलियुग के राजवंश' पुस्तक देखिये।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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