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________________ सस्कृत साहित्य का इतिहास सम्भावना नहीं है। भारत के प्राचीन राजवंशों का सम्बन्ध दो भूलस्रोतों से बताया जाता है सूर्य और चन्द्र ! आशा है कि जद पुराणों को ऐतिहासिक अन्य मानकर उनका अधिक विवेचनात्मक पाठ किया जायगा तब हमें प्राचीन भारत के सम्बन्ध में अनेक उपयोगी हाते मालूम होंगी। पुराणों में केवल पुरुषों, कोशल और मगध के राजाओं का ही विस्तृत वर्णन नहीं है प्रत्युत उनमें अवरकालीन शिशुनागो, नन्दों, शुगों, करवों और पानी का भी वर्णन है। इस प्रकार पुराणों का भारी उपयोग है। पुराणों के आधार पर पार्जिटर ने सिद्ध किया है कि आर्य लोग पश्चिम की ओर बढ़कर देशान्तरवासी हुए। इस प्रसङ्ग में यह सिद्धान्त बडा ही रोचक प्रतीत होता है। पौराणिक रूढ़ि इलावत को, जो ऐल्लों (श्रार्यों ) का मूल निवास स्थान है, नाभि ( भारत ) के उत्तर में बतलाती है। यही दिशा है, उत्तर पश्चिम नहीं, जिसे श्रार्य लोग श्राज तक पचिन्न मानते हैं । यह विश्वास किया जाता है कि आर्य लोग सन् २७०० ई० पू० से पहले ही कमी हिमालय के बीच के प्रदेश से भारस में आए तथा दह्य १६०० ई० पू० के पास-पास भारत से उत्तर पश्चिम मे गए । १४०० ई०पू० के बोमज-कोई के शिला-लेखों में भारतीय देवताओं के नाम आते हैं। ऋग्वेद् भारत में आए हुए प्रार्थों का प्राचीनतम लिखित अन्य माना जाता है और उस ऋग्वेद का ठीक-ठीक सा काल विद्वानों ने लगभग २००० ई० पू० माना है। श्राजकल के प्रचलित श्रार्थों के पूर्व-गमन के बाद से इन बातों का ठीक-ठीक उत्तर नहीं मिलता। ऐसा प्रतीत होता है कि द्रा लोग १६०० ई० पू० १. समय पाकर भूल चूक, परिवर्तन अवश्य हो गए होंगे, परंतु इसी आधार पर हम्म सारी रूदि को अविश्वास की दृष्टि से नहीं देख सकते। क्षत्रिय-रूढ़ियों को हमें उनके अपने आधार पर जॉचना और परखना चाहिए। - - - - -
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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