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________________ संस्कृत-साहित्य का इतिहास देशिक सामग्री कई प्रकार से बढ़ाई गई है, जिनमें से मुख्य-मुख्य ये हैं : ४२ -- कुछ ६ कहानियों और वनों की पुनरुक्ति', उपाख्यानों और दृश्यवनों की नकल ने आगामी घटनाओं की भविष्यवाणियां, परिस्थितियों की व्याख्या ४, और काव्य - अलंकारों का उपयोग" । किंतु सब से मुख्य कारण लौति को यह इच्छा है कि महाभारत को एक विस्तृत धर्मशास्त्र, ज्ञान का विशाल भरद्वार और औपाख्यानिक विद्या की गहरी स्थान बनाया जाय । विशेष उदाहरण के लिए कहा जा सकता है कि समग्र शान्तिपर्व बाद की मिलावट प्रतीत होता है । यह सारा पर्व भीष्म के मुख से कहलाया गया है, जिसकी मृत्यु छः महीने के लिए रुक गई थी। सातवें पर्व में 'इतो भीष्म:' ( भीष्म मारा गया), 'व्याजितः समरे प्राणान' ( युद्ध में उससे प्राण छोड़े गए ) इत्यादि ऐसे वाक्य हैं, जिनसे जाना जाता है कि वस्तुत, भीष्म शान्तिपर्व की कथा तक जीवित ही नहीं थे । (छ) काल -- सम्पूर्ण महाभारत को एक साथ जेकर उसके लिए किसी काल का निश्चित करना असम्भव है । जैसा हम ऊपर देख चुके हैं, महाभारत के विकास के सीन मुख्य काल हैं । श्रत: असली महाभारत के काल और आजकल के महाभारत के काल में कई शता यों का अंतर है । ܕ १. जैसे; बनपर्व में यात्राओ का पुनः पुनः वर्णन । २. जैसे वनपर्व में यक्ष प्रश्नोपाख्यांन नहुप उपाख्यान की नकल है । ३. कभी-कभी इसकी प्रति देखी जाती हैं । जैसे, युधिष्ठिर ने भीष्म से प्रश्न किया है कि ब्रांपकी मृत्यु किस प्रकार हो सकती है । ४. जैसे भीम का दुःशासन के रुधिर का पीना | कई बातों की व्याख्या करने के लिए स्वयं व्यास का कई अवसरो पर प्रकट होना । ५. जैसे; युद्ध के, शोक के, एव भाकृतिक दृश्यों के लम्बे-लम्बे वर्णन । ६, जसे, देखिए भूगोल सम्बन्धी जम्बूखण्ड और भूखण्ड का विस्तृत वर्णन ।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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