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________________ संस्कृत-साहित्य का इतिहास बताता है। इसके प्रोपदेशिक अंश ने, अपने प्रचलित च प्रमाक्षयगुणा द्वारा, इस प्रन्थ का पंचनवेद नाम सार्थक कर दिया है, जिसले इसका महत्व पूर्णतबा सिद्ध होता है। (ग) (१) साधारण संस्करण-महाभारत के हमें दो साधारण संस्करण प्राप्त होते हैं--(१) देव नागरी (या उत्तर-भारत) संस्करण (२) दक्षिण भारत-संस्करण । इन दोनों संस्करणों में परस्पर प्रायः इतना ही भेद है, जितमा रामायण के संस्करणों में | आकार में वे प्राय, बराबर हैं। जो बातें एक में छोड़ दी गई हैं, वे दूसरे में मिल जाती है। इसकी पूर्ण हस्तलिखित प्रतियाँ भारत के अनेक स्थानों के अतिरिक्त यूरोप, लन्दना, पेरिस और अर्जिन में भी पाई जाती हैं। अपूर्ण हस्तलिखित प्रतियों की संख्या तो बहुत है। किन्तु कोई भी हस्तलिखित प्रति चार पाँच सौ वर्ष से अधिक पुरानी नहीं है । अत: हमारे लिए यह संभव नहीं कि हम असली महाभारत का ठीक-ठीक पुनर्निर्माण कर लें या किसी एक हस्तलिखित प्रति को दूसरी से यथार्थ में उत्कृष्ट सिद्ध कर सकें। (२) आलोचनापूर्ण संस्करण १ --एक संस्करण, जिसमें हहिवंश भी सम्मिलित है, कलकत्ते में (१८३४-३६) चार भागों में छुपा था। इसमें कोई टोका नहीं है। --एक और संस्करण बम्बई में १८६३ में प्रकाशित हुआ था। इसमें हरिवंश सम्मिलित नहीं, किन्तु इसमें नीलकंठ की टीका मुद्रित है। इसके पाठ उपर्यंत कलकत्तासंस्करण के पाठों से अच्छे हैं और यह तब से कई बार छप चुका है।। सूचना- ये दोनो संस्करण अत्तरभारत-संस्करण हैं। अतः इन दोनों में परस्पर अधिक भेद नहीं है। १ यह मानना होगा कि ब्राह्मण-धर्म (वैदिक धर्म ) मे वेदों के बराबर किसी का प्रमाण्य नहीं है। २ कलकत्ते में एक और संस्करण १८७५ में प्रकाशित हुअा था । इसमें नीलकण्ठ की टीका के साथ साथ अजुनमिश्र की टीका भी छपी है।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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