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________________ ३० संस्कृत-साहित्य का इतिहास ययाति - नहुष ( ७, ८), वृत्र- वध (७, ८४-८७), उर्वशी - पुरूरवा (७, मह ३०), शूद्रतापस शम्बूक (७) (च) विशुद्धता -- कई बक्षण ऐसे हैं, जिनसे यह प्रतीत होता है कि रामायण की यथार्थ कथा छठे काण्ड में ही समाप्त हो जाती है 1 सातवाँ काण्ड उन उपाख्यानों से भरा पड़ा है, जिनका मूल कथा से कोई सम्बन्ध नहीं है। उदाहरणार्थ, सातवें काण्ड के प्रारम्भिक भाग में राक्षसों की उत्पत्ति, रावण के साथ इन्द्र के युद्ध, हनुमान के यौवनकाल का वर्णन है तथा कुछ एक अन्य कहानियाँ हैं, जिनसे मूल कथा की गति में पर्याप्त बाधा पड़ती है । इसी प्रकार पहले काण्ड में भी ऐसा पर्याप्त अंश है, जो वस्तुत. मौलिक रामायण में सम्मिलित नहीं रहा होगा । इस बारे में निम्नलिखित बातें याद रखने योग्य है- (1) पहले और सातवें काण्ड की भाषा तथा शैली शेष काराडों से निकृष्ट है । (२) पहले और सातवें कायड में परस्पर विरोधी अनेक बातें हैं पहले काण्ड के अनेक कथा- विवरण अन्य काण्डों के कथा- विवरणों क विरुद्ध हैं । उदाहरणार्थ, देखिए लक्ष्मण का विवाद । (३) दूसरे से लेकर छूटे काण्ड तक प्रक्षिप्त अंशों को छोड़कर, राम हुए वाल्मीकि ने एक क्रौञ्च मिथुन को स्वैर विहार करते हुए देखा | उसी समय एक व्याध ने नरक्रौञ्च को तीर से मार डाला। यह देखकर वाल्मीकि से न रहा गया । उनका हृदय करुणा से द्रवित हो गया । उन्होंने तत्काल उस व्याध को शाप दे दिया, जो उनके मुख से अनजाने श्लोक के रूप में निकल पड़ा । तब ब्रह्मा ने उसी 'श्लोक' छन्द में उनसे राम का यशोगान करने के लिए कहा। ऐच० जैकोबी का विचार है कि इस उपाख्यान का आधार शायद यह बात है कि हम परिपक्वावस्था को प्राप्त हुए श्लोक का मूल वाल्मीकि रामायण में ही देख सकते हैं, इस से पहले के किसी ग्रन्थ में नहीं ।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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