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________________ ३२४ संस्कृत साहित्य का इतिहास रहता । जैसा कि एक बहुअन लेखक ने इंग्लिश विश्वकोष में लिख है, उसके सिद्धान्तों के अनुसार तो किसी भी वर्णमाला से किसी में वर्णमाला का ध्युत्पादन किया जा सकता है। फिर डा० बुहर के व्युत्पा दन की रीति में कई बातें असमाहित रह जाती हैं। उनमें से कुछ एक यहाँ दी जाती है : (१) ग 'n', ज' और क के सिर पर की विशालता। (२) ब्राह्मी के क ' का सैमिटिक ता ( Taw) के साथ अभेद । यदि सैमिटिक वर्णमाला का यह अक्षर भारतीय लोग 'क' के रूप में ले सकते थे तो उन्होंने सैमिटिक ता (Taw ) को अपनी (ब्राह्मी) लिपि में ' इस रूप में विकृत क्यों किया ? ब्राह्मी के " इस अक्षर को ही सैमिटिक ता ( Taw ) " का स्थानापन्न का काल ८६० ई० पू० और ७१० ई.पू के बीच मालूम होता है, सम्भवतया "७५० ई. पू की अोर हो अधिक हो” । -इसके बाद उक्तः डाक्टर महोदय ने उस पुराने काल का निश्चय करने का यत्न किया है जिसमे भारतीय लोग व्यापार करने के लिए समुद्र के मार्ग से फारिस की खाड़ी तक जाया करते थे; क्योकि डाक्टर महोदय का विचार है कि सैमिटिक लिपि भारत मे ( Messopotamna ) के मार्ग से पहुंची होगी। आगे चलकर वे कहते हैं कि महत्त्वपूर्ण अक्षर असली या बहुत कम परिवर्तित रूप में व्यापारियों ने अपने हाथ में ही गुप्त रक्खे । बाद में वे ब्राह्मणों को सिखा दिए गए और ब्राह्मयों ने उनको विकसित करके ब्राह्मी लिपि का आविष्कार कर डाला । परन्तु अक्षरों को विकसित रूप देने मे कुछ समय लगा होगा। भट्टिमोलु के लेख से अनुमान होता है कि कई अक्षरो के रूप में कई बार परिवर्तन हुआ है। सारा विकास अवश्य एक क्रम से हुअा होगा जिसके लिए हम काफी समय मान लेते हैं। इस तरह इस लिपि के विकास की समाप्ति ५०० ई. पू. मे हो चुकी होगी।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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