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________________ संस्कृत और आधुनिक भाषाएं १३ ऊपर की सारिणी से यह बात विस्पष्ट दिखाई देगी कि ज्यों ज्यों भाषा विकसित होती जाती है, त्यों त्यो साहित्य की और बोलचाल की भाषा में भेद बढ़ता जाता है। डा० भण्डारकर ने वैदिक काल के उत्तरकालीन साहित्यिक काल को मध्य (Middle) संस्कृत और श्रेण्य (Classical) संस्कृत इन होभागों में बाँटा है। मध्य संस्कृत से उनका अभिप्राय ब्राह्मणों और रामायण-महाभारत के मध्य का काल है । उसमें मुख्य वैयाकरण पाणिनि है। श्रेण्य संस्कृत काल पाणिनि से बाद का काल है। इसके मुख्य वैयाकरण कात्यायन और परालि हैं। सर्वसाधारण की बोलचाल की भाषा की भिन्न भिन्न अवस्था को पाली ( जो अशोक के शासनलेखों की भाषा), नाटकों की प्राकृत भाषाएँ, अपश, भाषाएँ और वर्तमान भाषाएँ प्रकट करती हैं। नाटको की प्राकृत भाषाएँ भी तत्काजीन बोलचाल की भाषाओं को सही रूप में प्रकट नहीं करती है। प्रारम्भिक अवस्था में तो प्राकृत भाषाएँ बोलचाल की भाषाओं को ही प्रकट करती थीं, इसमें कोई सन्देह नहीं, परन्तु धीरे-धीरे साहित्यिक वैदिक और साहित्यिक संस्कृत के समान वे व्याकरण के रद नियमों में बैंध गई और केवल साहित्यिक उपभाषाएँ (Dialects) बनकर रह गई। उस समय की बोलचाल की भाषाओं को प्रकट करने वाली अपभ्रंश भाषाएँ है, जो अपने नम्बर पर, साहित्यिक उपभाषाएँ (Dialects) बन गई, और उसके बाद बोलचाल की भाषाओं को प्रकट करने वाली वर्तमान भारत की प्रार्य-भाषाएँ हुईं। एक काल से दूसरे काल में सरकना धीरे-धीरे हुआ। उदाहरणार्थ, चन्दबरदाई कृत 'पृथिवीराज रासो' की भाषा शौरसेनी अपभ्रश से बहुत मिलती जुलती है, किन्तु अाजकल की हिन्दी से बहुत भिन्न है। नीचे एक तालिका दी जाती है, जो अाधुनिक भारतीय प्रायः भाषाओं के विकास को विस्पष्ट करती है। १. किसी एक श्रेणी से सम्बन्ध रखने वाली।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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