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________________ मुरारि करने के लिए रात्रि में नक्षत्रमण्डल चमकता है । इसका वचनोपन्यास अक्लिष्ट परन्तु पाण्डित्यपूर्ण है। कभी कभी जब यह अपनी परिडताई दिखलाने लगता है तब किसी टीका की सहायता के बिना इसे लममना कठिन हो जाता है। इसकी उपमानों में कुछ कुछ मौलिकता और पद्योक्तियों में सङ्गीत जैसो लयश्रुति है। इसके कुछ श्लोक वास्तव में शानदार और जाद का-सा असर रखने वाले हैं। खेद है कि कुछ पाश्चात्य विद्वान् इसके ग्रन्थ के जौहर की महत्ता को नहीं जान सके हैं। विल्सन का मत है कि हिन्दू पण्डितों ने मुरारि का प्रन्यायपूर्ण पक्षपात किया है। कारण, "आजकल के हिन्दू विचार की विशुद्धता, अनुभूति की कोमलता और कल्पना की प्रामा का अनुमान लगाने की बहुत कम योग्यता रखते हैं"। परन्तु अमराव का सर्वाङ्गपूर्ण मध्येता जानता है कि इन्हीं गुणों के कारण की जाने वाली मुरारि की प्रशंसा सर्वथा यथार्थ है। (२) समय--(क) मुरारि ने मनभूति के दो पद्य उद्धत किए हैं, अतः यह निश्चय ही भवमूति के बाद हुआ। (ख) काश्मीर के अवन्तिवमा के (८५५-८८४ ई.) आश्रय में रहने वाले रस्नाकर ने अपने हरविजय महाकाव्य में श्लेष के द्वारा मुरारि की ओर जो संकेत किया है वह नीचे के पद्य में देखिए--- अंकोस्थनाटक इवोत्तमनायकस्य, नाशं कवियंधित यस्य मुरारिरिस्थम् । ( ३७, ३६७) (ग) मल के (११३५ ई.) श्रीकण्ठचरित से प्रतीत होता है कि यह मुरारि को राजशेखर से पहले उत्पन्न हुआ समझता था। शास: मुरारि का स्फुरण-काल मोटे रूप में ईसा को नौवीं शताब्दी के पूर्वा में माना जा सकता है। १ अनेन रम्भोरु ! भवन्मुखेन तुषारभानोस्तुलया धृतस्य । ऊनस्य नूनं प्रतिपूरणाय ताराः स्फुरन्ति प्रतिमानखण्डाः ।।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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