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________________ भवभूति शिश की रूपरवृति की और महावीर ( रम) के विनासायं उसके किए हुए दुरुपायों की भूमि में खड़ी की गई है। इसमें मानतीमाधव की सी विषयन्तनता नहीं है, हाँ कथावस्तु की एकता अपेक्षाकृत अधिक हैं। परन्तु कुछ इश्य अनाटकीय हो गए हैं और अनेक विवरण-वर्णनों नया लम्बी वक्तृतानों ने किया-वेग ( Action) को दुबैद्र कर दिया है। चश्वि-चित्रण में भी धुधनापन है। माल्यवन्त और शक्षण जैसे मुख्यपान भी पाठक के मन में अग्रगण्य व्यक्तियों के रूप में मासित नहीं होते हैं। (ब) मालतीमाधव-मातीमाधव एक प्रकरण है और इसमें दस अङ्क हैं। इसकी कथा का आधार कथासरित्सागर की पृथक पृथक कथाएं हैं । लेखक ने उन्हें लेकर एक सूत्र में गूंध दिया और एक बिल्कुल नई चीज पैदा करके पाठकों के सामने रख दी । इस সঞ্জয় ক্ষী বিজ্ঞান স্কা মা অনমুৰি জী মা মুক্তি স্বাক্ষৰ पैदा हुश्रा होगा। किन्तु इसमें मृच्छकटिक जैसा हास्य रस नहीं है, यहां तक कि इसमें विदूषक भी नहीं है। मृच्छकटिक के विरुद्ध इसमें प्रकृति के भयानक, भीषण और अलौकिक अंशों का समावेश बहे शौक से किया गया है। मालतीमाधव में मालती और माधव के प्रणप-बन्धन का वर्णन है। मालती एक राज-मन्त्री की दुहिता पी और माधब एक तरुण विद्यार्थी था। मावती के पिता के राजा ने मालती का विवाह अपने एक कृपा पान से करने का निश्चय कर रखा था, किन्तु मालती उसे नहीं चाहती थी । राना के सारे उपायों को माधय के सुहृद् मकरन्द ने मालती का रूप बनाकर और उसके साथ विवाह करवा के निष्फल कर दिया। यधपि भवभूति की रचना यथार्थ की प्रतिमूर्ति है तथापि पात्रों के राग और शोक का अधिक भाग बनावटी प्रतीत होने लगता है। कथावस्तु मुख्यतया एक आकस्मिक घरमा पर अवलम्बिस है। मालती दो बार मौत के मुंह में जाने से अचानक बच जाती है । नौ अङ्क पर
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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