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________________ मुद्राराक्षस २६१ इसका प्रिय छन्द शार्दूलविक्रीडित है। इसके रूपकों में यह ७३ मार श्राया है। इसके बाद स्नग्धरा का नम्बर प्राता है। (११०) मुद्राराक्षस विशाखदत्त के मुद्राराक्षस की गणना संस्कृत के अत्यन्त उत्कृष्ट रूपकों में की जाती है। इसमें साव अङ्क है, जिनमें मौर्य-काल की एक राजनीतिक घटना का वर्णन है। राक्षस को अपनी ओर मिलाने के चाणक्य-कृत कपटपूर्ण उपायों का, अन्तिम नन्दसम्राट के सचिव की प्रखरप्रतिमा और सच्ची स्वामिभक्ति का, मत्यकेतु को अपने साथ मिलाकर प्रथम मौर्य नरेश्वर को सिंहासनच्युत करने की उक्त सचिन द्वारा की हुई चातर्याम्चित योजनाओं का ऊर्जस्वित् वर्णन पढ़ने योग्य है। अन्त में चाणक्य ने मायकेतु और राक्षस में फूट उजवा ही दो । राक्षस को तिरस्कार सहकर विवश हो मलयकेतु की सेवा से हाथ खींचना पड़ा। अपने मित्र राक्षस के परिवार को गुप्त रूप से शरण देने के अपराध में सेठ चन्दनदास भी विपत्ति में पड़ गया। अन्त में अपने सुहृद् चन्दनदास के प्राणार्थ राक्षस को चाणक्य के लिए प्रात्म-समर्पण करना पड़ा। चाणक्य ने र.क्षस से कहा, “यदि तम चन्दनदास के प्राणों की रक्षा चाहते हो तो तुम्हें चन्द्रगुप्त मौर्य का सचिव पद स्वीकार करना होगा" इच्छा न होने पर भी राक्षस को चाणक्य की बात माननी पड़ी। यहीं नाटक की सानन्द समाप्ति हो जाती है। मुद्राराक्ष ऐतिहासिक नाटक है और इसमें अनेक राजनीतिक षडयन्त्रों का वर्णन है। शृङ्गार और करुण रस का इसमें स्पर्श भी नहीं है। समापक अंक में चन्दनदास की स्त्री के रूप में केवल एक ही स्त्रीपात्र का प्रवेश कराया गया है, वह भी किसी रागात्मक मृदुल दृश्य को दिखाने के लिए नहीं, किन्तु कठोर कर्तव्य तथा स्वार्थ-सत्याग का दृश्य दिखाने के लिए। नाटक का स्थायीभाव उत्साह और रस वीर है, परन्तु यह उतना उकवान नहीं है जितना भवभूति-रचित महावीरचरित का। हां, गति अर्थात् क्रिया-वेग (Action) की अद्भुत एकता
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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