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________________ हर्ष के नाम से प्रचलित तीन रूपक २८७ १ इल्लिग के यात्रा-वर्णन से भी पुष्ट होता है । हलिंग कहता है कि नृप शीलादित्य ने बोधिसत्व जीमूतवाहन की कथा को पद्यबद्ध किया था और अपने जीते जी इसका प्रचार करने के लिये नृत्य और अभिनय के साथ इसका खेल भी करवाया था इसके अतिरिक्त बाण हमें बताता कि हर्ष वर्धन में [ महती ] कवि प्रतिमा थी । * (२) धावक या बारण ?---मम्मद ने अपने काव्यप्रकाश में काव्य के चार प्रयोजनों में से एक प्रयोजन धनप्राप्रि भी बतलाया है और इस का उदाहरण देते हुए कहा है- "श्रीहर्षादेर्धाविक (बारा) आदीनामिव धनम्" । कदाचित् धावक ने श्रीहर्ष के राज दरबार में रहकर कोई उत्तम काव्य लिखा होगा और इसके लिए अपने स्वामी से कोइ बहुमूल्य पुरस्कार प्राप्त किया होगा। इस बात से भी इनकार नहीं हो सकता कि बाण को भी हर्षचरित लिखने पर अपने स्वामी [ह] से पुष्कल द्रव्य मिला होगा। इन रूपकों को हर्षचरित के साथ मिलाकर देखते हैं तो इनकी अपकृष्ट शैली से इनका बायकृत न होना बिल्कुल विस्पष्ट हो जाता है । इसके अतिरिक्त, बाण का हर्षचरित साहित्यिक गुणों में इन रूपकों से निस्सन्देह उत्कृष्ट है । अत: इन रूपकों की तथाकथित विक्री को अपेक्षा हर्ष चरित की बिक्री से बाण को अधिक धन मिल सकता था। परन्तु मम्मट के उपयुक्त वाक्य का अर्थ और तरह भी लगाया जा सकता है । इस अर्थ का समर्थन राजशेखर द्वारा भी होता है जिसने लिखा है कि धावक ने ये रूपक लिखकर इनके ऊपर श्री से पुरस्कार प्राप्त किया। हाँ, यह कहना कठिन है कि राजशेखर १ हर्ष का दूसरा नाम । २ ' भारत एवं मलय द्वीपों में बौद्धधर्म का एक इतिहास' ( इंग्लिश, पृष्ठ १६३, तकोकुसु ( Takokusu ) द्वारा अनूदित ) । ३ यह पाठ काश्मीरी प्रति के अनुसार है। ४ देखिए पहले भी महाकवि भाव के प्रसंग में । हर्ष की एक नाट्यशास्त्र टीका भी प्रसिद्ध है । यद्यपि रस्नावली नाट्यशास्त्र के नियमों के अनेक
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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