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________________ को कई घटनाएँ वर्णित है। यह वेदों का इस्कृष्ट विद्वान्, गणिव में गतिमान, कमनीय कलाओं का कान्त और युद्धवीरों के घर-वैभव कर स्वामी था। दुष्का अपस्या करके इसने पार्वती श्वर से का प्राप्त कर जिया था। भोपाख्यामिक वर्णनों में इसकी विविध विजयों और विक्रान्त कृतियों की गोतियाँ सुनी जाती है। मच्छकटिक की वर्थवस्तुरूपक की परिभाषा में मृच्छकटिक को प्रकरण कहते हैं। इसमें दस अंक है। इसमें चारुदत्त और वसन्तसेना की प्रणयलीला अमर की गई है। चारुदत्त वात्स्यायन के कामसूत्र के अनुसार एक आदर्श नागरिक था । बसन्त सेना अचमी की अवतार कोई वेश्या थी । गुणशाली ब्राह्मण चारुदत्त अपनी राजोचित दामशीबता के कारण दरिद हो गया। इतने पर भी इसने अपने पुण्य-कर्म का परित्याग नहीं किया। इसके गुणों के कारण वसन्तसेना, जो वेश्या के घर उत्पन्न हुई थी, मृत्यगान में अत्यन्त निपुण शो, इस पर मुग्ध थी चारुदत्त आत्म-संयमी और मनवी पुरुष था । यही कारण है कि हम रागांकुर का मुख प्रायः पहले वसन्तसेना के हृदयक्षेत्र में बाहर निकला हुआ देखते हैं । वसन्तसेना ने शकार कोलाजा के सालेकी-प्रणययाचना स्वीकार नहीं की। इससे शकार उस पर क्रुद्ध हो गया। चारुदत्तविषयक वसंतसेनाका अनुराग शुद्ध और पारमार्थिक है। विट तक को कहना पड़ा कि “पद्यपि वसन्तसेना एक वाराङ्गना है,तथापि उसका अनुराग वागअनाओं जैसा नहीं है । शकार ने उसे ताना मारते हुए कहा- तू एक भिखमंग बामण को प्यार करती है। वसन्तसेना ने इसे अपने लिए गर्व की बात समझा । ऋर और भीरु शकार के निर्दय प्रताड़न से बह मुछित हो गई। इसे भरा हुधा सममा तो धूलं शकार चारुदत्त को उसकी हत्या का दोषी ठहराने बगा। कितना करुण दृश्य है ! उस शूद्रककथा---पञ्चशिखर रचित प्राकृत-कविता । इसका नाम भोज की रचना में आया है । (ध) विक्रान्तशुद्रक-एक रूपक । इसका नाम भोज और अभिनवगुप्त ने किया। ---
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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