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________________ 14 15 संस्कृत-साहित्य का इतिहास बाली है। वेद, ब्राह्मण, उपनिषद्, रामायण, महाभारत, पुराण, गोतिकाव्य, सर्वसाधारण में प्रचलित कथाएँ एवं भौपदेशिक कहानियां, इन सबके ग्रंथों के यहां तक कि वैज्ञानिक साहित्य के ग्रंथों के भी, यूरोप की भाषाओं में अनुवाद हो चुके हैं, उन पर टीकाएं लिखी जाचुकी हैं और उनकी अनेक हस्तलिखित प्रतियों को मिला कर भिन्न-भिन्न पाठयुक्त ( Critical ) संस्करण निकल चुके हैं। अतः उन ग्रन्थों का पश्चिम पर कोई कम प्रभाव नहीं हो सकता । ( ३ ) संस्कृत में ऐतिहासिक तत्व का प्रभाव यद्यपि संस्कृत भाषा के विद्वानों ने इस दिशा में सूक्ष्म अनुसन्धान और महान् परिश्रम किया है, तथापि संस्कृत-साहित्य का इतिहास अभी तक अन्धकार में छुपा हुआ है। भास और कालिदास जैसे सुप्रसिद्ध कवियों के जीवनकाल के निर्धारण में विद्वानों के मतों में शताब्दियों का नहीं बल्कि पाँच-छः शताब्दियों का भेद है । 'भारतीय साहित्य के इति हास में दी गई सारी की सारी तिथियाँ काग़ज़ में लगाई हुई उन दिनों के समान है, जो फिर निकाल दी जाती हैं" । जहाँ अन्य शाखाओं में संस्कृत-साहित्य ने कमाल कर दिखाया, वहाँ इतिहास-क्षेत्र में इसमें बहुत कम सामग्री पाई जाती है। इतिहास विषयक साहित्यिक ग्रन्थ संख्या में कम हों, इतनी ही बात नहीं है, उनमें कभी-कभी कल्पना की भी मिaraट देखी जाती है । संस्कृत का सब से बड़ा इतिaासकार कल्हण तक यूनानी होरोडोटस की भी तुलना नहीं कर सकता । इसके कारण --संस्कृत में इतिहास का यह अभाव क्यों है ? इसका पूरा पूरा सन्तोष करने वाला उत्तर देना तो कठिन है । हाँ, निम्नलिखित कुछ बातें अवश्य ध्यान में रखनी योग्य है--- १. देखो डब्ल्यू० डी० हिटने कृत 'संस्कृत ग्रामर' की भूमिका, लीपजिग, १८७६ । उसने पचास साल से भी अधिक पहले जो सम्मति दी थी वह श्राज भी वैसी की वैसी ठीक उतरती है।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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