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________________ २४४ सस्कृत साहित्य का इतिहास নানা ছী বলী বা প্লিবী ক্ষী দুৰনীয় জং # अधिक समानता होनी चाहिए। किन्तु वस्तुस्थिति ऐसी नहीं है। (४) रचयिता-उपोद्धात में आता है कि विष्णुशर्मा ने मिहिजा. रोप्य' नामक नगर के महाराज समरशक्ति के तीन पुत्रों को छ: महीने के अन्दर राजनीति पढ़ाने का मार अपने ऊपर लिया। उपोद्घात के खीसरे पक्ष से शुद्ध रूप से प्रकट ही है कि यह इसका रचयिता विष्णुशर्मा ही था। यह मानने के लिए कोई कारण नही है कि यह नाम काल्पनिक है। हाँ, रचयिता के जीवन के विषय में कुछ मालूम नहीं है। इलने उपोद्धात के एक पत्र में माना देवताओं को नमस्कार किया है। इससे प्रतीत होता है कि यह कोई बौद्ध या जैन नहीं बल्कि एक उदार स्वभाव का ब्राह्मण था। (५) उत्पत्ति-स्थान-प्रसखी पञ्चतन्त्र के उत्पत्ति-स्थान के बारे में निश्चित कुछ भी मालूम नहीं है । इटल का प्रस्तत किया हुश्रा विचार यह है कि पतन्त्र का निर्माण काश्मीर में हुआ होगा, कारण असली पञ्चतन्त्र में शेर और हाथी का नाम नहीं पाता है, ऊँट का नाम बहुत पाता है। किन्तु यह युक्ति भी ठीक नहीं है। कुछ यात्राओं के नाम पाते हैं, परन्त उनसे भी कोई परिणाम निकालना कठिन है। क्योंकि, ऐसे नाम सारे के सारे भारतवर्ष में प्रसिद्ध चले आ रहे है। यदि मिहिजारोप्य' नगर का राजा अमरशक्ति कोई वस्तुतः राजा हुमा है तो अन्धकार कोई दक्षिणाय होगा। उन्ध में शून्यमूक पर्वता १ पाठान्तर महिलारोप्य है । २ वह पद्य यह है-- बहा रुद्रः कुमारो इरिवरुणायमा वहिरिन्द्रः कुबेरश. चन्द्रादिल्यौ सरस्वयुद्धी युगनगा वायुरूर्वी भुजङ्गाः । सिद्धा नद्योऽश्विनौ श्रीदितिरदितिसुता मातरश्चण्डिकाद्या, वेदास्तीर्थानि यज्ञा मारणपसुमुनयः सन्तु नित्यं ग्रहाश्च ।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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