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________________ वेतालपञ्चविंशतिका २२५ रण से की गई हैं और ईसा की पांचवीं शताब्दी के प्रारम्भिक काल की है। इन कहानियों में मूरों,धूनों और शठों की कहानियां बड़ी रोचक हैं। कुछ कहानियां स्त्रियों के प्रेम-पाश की भी दी गई है। इनमें से कुछ वस्तुतः चारित्र्य का निर्माण करने वाली है । प्रवन्धक तापसी के 'भूतन्द्रयानभिद्रोहा धर्मो हि परमो म:" उपदेश का देवस्मिता पर कोई असर नहीं हुअा। देवस्मिता के कौशल के सामने उसके भावी प्रेमियों की एक बड़ों चली। वह उन्हें विप-चुनी शराब पिला देवी है कुत्ते के पारसी पंजे से उनके माथे को दाग देती है और उन्हें गन्द से भरी एक खाई में फेंक देती है। बाद में वह उन्हें चोर चोषित कर देती है। शठों के साथ यही व्यवहार सर्वथा उचित था । कुछ कहानियां बौद्ध-रंग में रंगी हुई देखो बाते हैं। उदाहरणार्थ हम पस हाजा की कहानी ले सकते हैं। जिसने अपनी आंखें निकलवा डाली थीं। छमके अतिरिक्त पोग-भंग और कपूर-दश इत्यादि के वर्णन तथा समुद्र और स्थन-सम्बन्धी प्राश्चर्यजनक घटनाओं को कुछ कहानियां भी हैं । प्रकृति वर्णन की मा अपेक्षा नहीं की गई है। (८६) बेतालपञ्चविंशतिका । इस अन्य में पच्चीस कहानियां हैं। इनका वक्ता एक बेवाल (राछ में बसा हश्रा भूत) और श्रोता नृप त्रिविक्रमसेन है। भाज कल यह अन्य इमे बृहत्कथामजरा और कथासरित्सागर में सम्मिलित मिक्षता है; परन्तु सम्भव है मूलरूप में यह कभी एक स्वतन्त्र प्रन्य हो। बाद के इसके कई संस्करण उपलब्ध हैं। इसमें से एक, ओ (१२वीं या और १ ये कहानियां सङ्घसेनलिखित एक अन्य में पाई जाती हैं । इसका अनुवाद लेखक के ही शिष्य गुणद्धि ने ४६२ ई० मे चीनी भाषा मे किया था। २ (पञ्च) भूतों से इन्द्रियों को सुखी करना ही सबसे बड़ा धर्म है। ३ बाद के संस्करणों में राजा का नाम विक्रमादित्य शाया है।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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