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________________ - काव्य और चम्पू २०७ एक सुन्दर उपदेश दिया। तब राजकुमार को युवराज पद देकर इन्द्रायुध नाम का एक बड़ा अद्भुत घोड़ा और पत्रलेखा नाम की विश्वासपात्र अनुधरी दी गई । श्रथ राजकुमार दिग्विजय के लिए निकला और तीन वर्ष तक सब संग्रामों में विजयी होता हुआ आगे बढ़ता रहा । एक बार दो किन्नरों का पीछा करता हुआ वह जङ्गल में दूर निकल गया जहाँ उसने एक सुन्दर सरोवर के तट पर तपश्चर्या करती हुई महाश्वेता नामक एक परम रमणीयाङ्गी रमणी को देखा । रमणी ने राजकुमार को बताया कि मेरा पुण्डरीक नामक एक तरुण पर और उसका मुझ पर अनुराग था; परन्तु हम अभी अपने पारस्परिक अनुराग को एक दूसरे पर प्रकट भी न कर पाए थे कि पुण्डरीक का लोकान्तर -गमन हो गया। मैंने उसकी चिता पर उसी के साथ सती होना चाहा; किन्तु एक दिव्य मूर्ति सुझे पुनर्मिलन की श्राशा दिलाकर उसके शव को ले गई। इस आत्म कथा के अतिरिक्त महाश्वेता ने राजकुमार को अनुपम लावण्यवती अपनी प्रियसखी कादम्बरी के बारे में भी कई बाते बताई । इसके बाद चन्द्रापीड़ कादम्बरी से मिला। दोनों एक दूसरे पर मोहित हो गए । किन्तु अभी उन्होंने अपने अनुराग को एक दूसरे पर प्रकट भी नहीं क्रिया था कि चन्द्रापीड़ को पिता की ओर से घर का बुलावा आ गया और उसे निराश हृदय के साथ घर aौटना पड़ा। इससे कादम्बरी का मन भो बड़ा उदास हो गया। उसने श्रात्महत्या करनी चाही; किन्तु उसे पत्रलेखा ने जिले चन्द्रापीड पीछे छोड़ गया 警 था, रोक दिया और फिर स्वयं चन्द्रापीड के पास आकर उसे कादम्बरी की प्रेम-चिह्नवता की सारी कथा सुनाई' । पत्रलेखा से कादम्बरी की विह्वलता की कथा सुनकर चन्द्रापीड़ १ बाणकृत ग्रन्थ यही हैं । कथा का शेष भाग उसके पुत्र भूषण भट्ट ने लिखा है।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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