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________________ कल्हण की राजतरंगिणी १ है | रहती । पात्रों के मनोवृत्ति की ओर भी दृष्टि आए बिना नह कार्यों के उचितावित होने का विचार धर्मशास्त्रोक सिद्धान्तों के आधार पर एक विविक नैतिक मनोदसि के अनुसार किया गया है। काश्मीर पर शासन करने की कला के विषय में अपने विचारों को, जो प्रायः कौटिलीय अर्थ-३ - शास्त्र पर अवलम्बित हैं, इसने कलितादित्य के मुंह से कहलवाया है। शैजी-हम पहले कह चुके है कि की राजतरंगिणी की रचना काव्य की उच्चतर शैली में नहीं हुई है। इसे दोष ग कहना चाहिए, जिसकी तुमा यूरोप के मध्यकालीन इतिहासों से की जा सकती है। भाषा में सादगी और सुन्दरता दोनों हैं। साथ ही इस धारा का प्रवाह भी है जो इस ग्रन्थ को एक मुख्य विशेषता है । कभी कभी at eat afare शक्ति का भी परिचय देवा है। यह शक्ति शब्द-चित्रों में खूष प्रस्फुटित हुई है। उदाहरण के fire हर्ष के निर्जनवास और विपत्ति की करुया कहानी देखी जा सकी है । सम्भाषण के प्रयोग से हमें पदापन और नाटकीय fee में स्वाद पैदा हो गया है । दूसरी तरफ 'द्वार' (निरीक्षणार्थं सीमा पर बड़ी चौकी), 'पादान' (nagari का बहर दफ्तर) इत्यादि पारिभाषिक शब्दों के लक्षण दिए बिना ही उनका प्रयोग करने से कहीं-कहीं इसमें दुरूह आ गई है। ष्टक, ब्रोटक और aiser ate aor जैसे एक ही नाम के भिन्न-भिन्न रूपों के प्रयोग ने इस दुरुता और भी वृद्धि कर दी है } में ee ite पर aurat or rate करने का इसे पदा शौक है; इसके लिए पर्वत, नदी, सूर्य और चन्द्रमा से अधिक काम शिया गया है। इसकी रचना में देखने में जाने वाली एक और विशेष बात यह है कि इसमें रखे और freerame winकारों की अधिकता है। कन्द की प्रखर सादगी को सौभाग्य से बीच-बीच में क बाजे भसंकृत पथों के साथ-सर कर दिया है। स्प
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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