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________________ স্কুল ঈম লিখি । १८५ इसके बाद यह क्षेत्तीस के बारे में बिल्कुल मौन साध कर पद्ममिहिर के आधार पर अगले अ.ह राजाश्रा के वर्ग का प्रारम्भ लब से करता है। अन्तिम पाँच राजाओं का पता इसे चिल्लाकर से लगा था | वाकालिक इतिहास के विषय में कल्हण की दी हुई बात विश्वसनीय और मूल्यवान् है। सब प्रकार के उपजन्य शिक्षालेखों का, भूदान लेखों का, प्रशस्तियों का और महलो मन्दिरों और स्मारकों के निर्माण के वरान से पूर्ण लेखपत्रों का निरीक्षण इसने अपने आप किया था। इतना ही नहीं, इसने सिकों का अध्ययन और ऐतिहासिक भवनों का पवित्रा किया । काश्मीर को उपत्यका और अधिस्थचा कर इसे पूरा-पूरा भौगोलिक ज्ञान था। इसी के साथ-साथ, इस पृथक-वंशों के अपने ऐतिहासिक सन्दमों तथा सब प्रकार की स्थानिक हन्त कमानों से भी काम दिया। अपने समय की तथा अपने समय में एचास साल पहले की घटनाओं का विस्तृत ज्ञान इसने अपने जिता तथा अन्य लोगों से पूछ पूछ-कर माप्त किया था। करहण बड़ा उत्साही और संयत जगदी था। इसका पात्रों का चित्रए वास्तविक और पक्षपातशून्य है। इसका दिया हुश्रा अपने समय के शाल के महाराज जयसिंह का दर्शन विरुदाख्यान हे सर्वथा सुरू है। इसके रचित अपने देश निवासियों के गुणावगुण के बाद चित्र विशद, यथार्थ धीर शोचक है। इसका कथन है कि काश्मीरी लोग सुन्दर, ले और अस्थिर होते हैं। सैन्य अभ्यवस्थ तथा भार हैं--प्रवाह सुनकर भागने को तैयार हैं। राजपुत्रों में साहस और स्वामिन-मक्ति है । राजकर्मचारीलोमी, अत्याचारी और अस्वाभि-भरक है. किन्तु दिलाय और अलंकार जैसे राजमन्त्रियों की ग्रह सञ्चो प्रशंसा करता है। पानों का चरित्र अकित करने में कल्हण अपने पुरस्लर बाणा, . .१ पद्ममिहिर का अाधार कोई हेलाराज पाशुपत था, जिसका अन्य कोई बहग्रन्थ होगा मगर वह कल्हण से पहले ही लुप्त हो चुका था।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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