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________________ सूक्ति -संदर्भ सापराधमया मयापि न वारिताऽतिमयेन ॥ हरि हरि इतादरतया गता सा कुपितेव ।। किरिष्यति किं वदिष्यति सा चिरं विरहेण । किं धनेन जनेन कि मम जीवितेन गृहे ॥ हरि हरि .. इस अन्य पर अनेक टीकाएँ लिखी जा चुकी हैं और अनेक कवियों ने इलाके अनुकरण पर लिखने का प्रयत्न किया है। १६६) शोधाममारिका-यद्याप सन्धि-संग्रहों में और भी अनेक सङ्गीत (खण्ड) काव्य-प्रणेताओं के उल्लेख मिलते हैं तथापि वे लगअग इन योग्य नहीं है कि यहां उनका परिचय दिया जाए। हां, शीबमहारिका का नामोल्लेख करना अनुचित न होगा क्योंकि इसके कई पछ वस्तुनः परम रमत्मीय हैं। बानगी का एक पच देखिए: दूति तरुणी, युवा स चपन:, श्यामास्तपोभिर्दिशः, सन्देश' सरहस्य एष विपिने संकेतकाऽऽवासकः । भूयो भूय इसे वसन्तमरुतश्चेतो नयन्त्यन्यथा, गच्छ क्षेमसमानामा निपुणं रक्षन्त ते देवताः ।। इसकी भाषा नैसर्गिक और शली सौष्ठवशालिनी है। इसका प्रिय छन्द शान-विक्रीडित है। (६८) सूक्ति-सन्दर्भ। सूक्तिसन्दर्भ वे ग्रन्थ हैं जिनमें पृथक् पृथक काब्य-कलाकारों की कृतियों में से चुने हुए पद्य पङगृहीत हैं। काल-दृष्टि से वे अधिक पुराने नहीं है, पर उनमें सामग्री पर्याप्त पुरानी सुरक्षित है। जिन खएकाव्यकारों और नीतिकाव्यकारों के केवल नाममात्र सुनने में प्रात हैं उनके उदाहरण इन सूक्ति-संदर्भो में सुरक्षित हैं । परन्तु इन पर १ जयदेव के सम्बन्ध में मूल्य की केवल एक ही चीज और है और वह है हिन्दी में इरिगोविन्द की प्रशस्ति, यह सिक्खो के 'श्रादि अन्य' में सुरक्षित है।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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