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________________ १६८ संस्कृत साहित्य का इतिहास इस कवि का प्रिय छन्द शादूलविक्रीडित है । समय - ( २ ) आनन्दबध ेन ने ( ८५० ई० ) अमरुशतक को एक बड़ा ख्यात-मात ग्रन्थ माना 1 (ख) वामन ते ( ८०० ई० ) इसमें से तीन लोक उद्घृत किए हैं। मिश्च मे तो कुछ नहीं कहा जा सकता, परन्तु ईसा की सातवीं शताब्दी अमरु का बहुत-कुछ ठीक समय समझा जा सकता है । (६१) मयूर (वों श०) मयूर हर्षवर्धन के दर्बारी कवि बाण का ससुर था; यह प्रसिद्ध है । इसका सूर्यशतक प्रसिद्ध है । इस कारण की रचना का कारण बतलाने वाली एक प्रमाणापेत प्रसिद्धि है। कहा जाता है कि मयूर ने अपनी ही कन्या के सौंदर्य का बड़ा सूक्ष्म वर्णन किया था इस पर कुपित होकर कन्या ने शाप दे दिया और वह कोडी हो गया। तब उलने सूर्यदेवता की स्तुति में सौ श्लोक बनाए, इसमें उसका कोद नष्ट हो गया । (६२) दिवाकर (७वीं श०) --- यह भर्तृहरि और मयूर का समकालीन था । इसने अपने समय में अच्छा नाम पाया था । इसक थोड़े से श्लोक सुरक्षित बजे श्रा रहे हैं । (६३) मोहमुद्गर -- रूप-रंग और विषय दोनो के विचार से इसकी तुलना भर्तृहरि के वैराग्यशतक ले की जा सकती हैं। इसका कोई कोई श्लोक वस्तुतः बड़ा सुन्दर हैं । यह शहर की रचना कही जाती है; परन्त इसका प्रमाण कुछ नहीं है । (६४) शिक्षण का शान्तिशतक - इस ग्रन्थ में कुछ बौद्ध मनोवृत्ति पाई जाती है। इसका समय निश्चित है । काव्य की दृष्टि से यह भर्तृहरि की रचना से घटिया है और अधिक लोकप्रिय भी नहीं है । राध मुझ में ही है' !! 'तब फिर गद्गद् कण्ठ से रोती क्यो हो ' ? 'किस के सामने रोती हूं ?' 'हूं' यह मेरे सामने रो रही हो या नहीं ?' 'तुम्हारी क्या लगती हुँ' ? 'प्यारो' | 'प्यारी नहीं हूं, इसीलिए तो रोना श्रा रहा है।'
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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