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________________ काव्य-निमाता (४) यह व्याकरण का बड़ा विद्वान् है, और हजधर्म (Furrow) जैसे अप्रसिद्ध पदों का प्रयोग करता है। यह काशिका में से अधिकमस और मर्माविध जैसे अप्रसिद्ध प्रयोग लेता है। यह पश्यतोहर, जम्पती और सौख्यरात्रिक जैसे विल-प्रयुक्त शब्दों का प्रयोग करता है। निस्सन्देश भाषा पर इसका अधिकार बहुत भारी था। (५) छन्दों के प्रयोग में यह बाड़ा निपुण है । सग २, ६ और 1. में श्लोक तथा सा ३, ५, ६, और १२ में वंशस्थ प्रधान है। (च) काम-(1) इसे काशिका वृत्ति ( लगभग ६५० ई.) का। पता था, यह तो सन्देह से परे है। (२) यह माघ से प्राचीन है क्योंकि बाद में इसके एक एच की छाया दिखाई देती है। (३) वामन ( ८०० ई.) ने वाक्य के प्रारम्भ में 'खलु' शब्द के प्रयोग को दूषित बताया है। पर ऐसा प्रयोग कुमारदास की रचना में पाया जाता है। अत: विश्वास होता है कि शासन को इसका पता था। (४) राजशेखर ( १०० ई.) इसके यश को स्वीकार करता हुआ जानकाहरणं कतु" रघुवंशे स्थिते भुवि । कविः कुमारदासश्च हावखन यदि क्षमः ।। अत' कुमारदास को ६१० और ७०० ई० के मध्य में कहीं रख सकते हैं। (४०) वाकपति का मउडवह (८वीं शताब्दी का प्राहम्म)-- गाडवह ( गौडवष) प्राकृत-काव्य है जिसे वीं शताब्दी के प्रारम्भ में चाक पति ने लिखा था । इसमें कवि के प्राश्रयदाता कोज के अधीश्वर यशोवर्मा द्वारा गौड़-नरेश के पराजित होने का वर्णन है। गया है ? बालक (राम) ने अपने हाथों से अपना मह छिपाकर झूठ मूठ की अॉख मिचौनी खेली।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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