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________________ कमय-निर्माता १४६ लिखा था । यह कालिदास की कृति कही जाती है। दण्डी और बाण ले इसकी सड़ी प्रशंसा की है। किन्तु दीर्ष समाल तथा कृत्रिमतापूर्ण शही को देखकर विश्वास नहीं होता कि यह कालिदास की रक्षना है। (३६) कुमारदास का जालकीहरण (७वीं शताब्दी) (क) जानकीहरणकान्य का पता इसके शब्द-प्रतिशब्द सिंहाली अदुबाद से लगा था। इसी के आधार पर पहले इसका प्रकाशन भी हुआ, किन्तु अब दक्षिण भारत में इसकी स्व-लिखित प्रति भी मिल गई है। (ख) कहा जाता है कि इसका लेखक लंका का कोई राजा (५१७२६) में था और कालिदाल की मृत्यु में उसका हाथ था। किन्तु ये बातें माननीय नहीं प्रतीत होती। (ग) आपली काव्य के २५ सर्ग है। इसकी कथा वही है जो रघुवंश की है। अन्य को देखने से मालूम होता है कि कचि में अर्शन करने की भारी योग्यता है । इसमें जो वर्णनात्मक चित्र देखने को मिलते हैं उनमें से कुछेक ये हैं--दशरथ, उसकी पत्नियों और अयोध्या का चित्र (सर्ग १), जनक्रीड़ा, वसन्त, सूर्यास्त, रात्रि और प्रभात का (सर्ग ३), सूर्यास्त का और रात्रि का (सर्ग ८), वर्षा ऋतु का (सर्ग ११) और पतझड़ का (सर्ग १२)। घ) कालिदास का प्रभाव-क्या विषय के निर्वाचन और क्या शैशी के निर्धारण दोनों ही में लेखक पर कालिदास का प्रभाव परिलक्षित होता है। यह मानना पड़ता है कि यह कवि कालिदास का बड़ा भक्क था और इसने विषय के साधारण प्रतिपादन एवं रीति दोनों बातों में उसका यथेष्ट अनुकरण किया। इसका 'स्वामिसम्मदफलं हि मण्डन' शाक्य कालिदास के 'प्रियेषु सौभाग्यफला हि चारुता' (कृ० सं० ५, १) वाक्य से बिल्कुल मिलता है। जानकी हरण के सर्ग में १ रघुवंश, सर्ग १२ को जानकी हरण के तत्तुल्य अंश-श. भिलाकर देखिये।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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