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________________ संस्कृत साहित्य का इतिहास है- महाकाव्य' और कान्य । इस अध्याय में हम महाकाम के रोष कवियों की चर्चा करेंगे और अगले में काव्य के लेखकों को लेंगे। - - - - - काय जगत में भारवि का बड! उच्च स्थान है। शालिदास के काव्यों के समान इसका किरातार्जुनीय भी महाकाव्यों में परिगणित होता है। इसके काव्य की प्रमा की तुलना सूर्य की प्रभा ले की जाती है। कालिदास के समान इसके भी जीवन का वृत्तान्त अन्धकार के गर्भ में छिपा पड़ा है। भारवि का समय। मावि के समय के बारे में अधोलिखित बाह साइन उपलब्ध होता है- (१) ऐहोल के शिलालेख में (६३४ ई.) कालिदास के साथ इसका भी उल्लेख यशस्वी कवि के रूप में किया गया है। १ दण्डी ने अपने काव्यादर्श १, १४-०२० मे महाकाव्य का जो लक्षण दिया है उसके अनुसार महाकाव्य का प्रारम्भ आशीः, नमस्क्रिया अथवा कथावस्तुनिर्देश से होना चाहिए । विषय किसी जनति से लिया गया हो अथवा वास्तविक हो । उद्देश्य धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष मे से ___ कोई एक हो । नायक धीरोदात्त होना चाहिए । इसमें सूर्योदय, चन्द्रोदय ऋतु, पर्वत, समुद्र, नगर इत्यादि भोतिक पदार्थों, अनुरागियो के वियोग अथवा संयोग, पुत्रजन्म, युद्ध, नायक-विजय इत्यादि का ललित वर्णन होना चाहिए । यह संक्षिप्त न हो। इसमें रसो और भावो का पूर्ण समावेश हो । सर्ग बहुत बड़े बड़े न हो । छन्द आकर्षक हो और सर्ग की समाप्ति पर नए बन्द का प्रयोग हो । एक सम की कथा से दूसरे सर्ग की कथा नैसर्गिक रूप में मिलती हो । २ प्रकाश सर्वतो दिव्यं विदधाना सता मुदे । प्रबोधनपरा हृद्या भा रवेरिव भारवेः ॥
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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