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________________ अश्वघोष के महाकाव्य इलाके महाकाव्य - बुद्धचरित और सौन्दरानन्द ही अधिक है। बुद्धचरित की शारदालिपि में एक हस्तलिखित प्रति मिलती है जिसमें तेरह वर्ग पूर्ण और चौदहव सग के केवल चार पथ हैं। इस ग्रन्थ का अनुवाद चीनी भाषा में (४१४-४३१ ई० में) हो चुका है और इस्सिङ्ग इसे प्रश्वयोर की रचना बतलाता है। केवल चोली अनुवाद ही नहीं, तितो अनुवाद भी हमें बतलाता है कि असली बुद्धचरित में २७ सर्ग थे। कहानी बुद्ध-निर्वाण तक पूर्ण है। इरिसङ्ग के वन ले मालूम होता है कि ईसा की छटी और सादही शताब्दी में सारे भारतवर्ष में बुद्धचरित के पाठन-पाठन का प्रचार था। १३ वीं शताब्दी में श्रमतानन्द ने विद्यमान १३ सगर्गों में सर्ग प्रार जोड़कर कहानी को बुद्ध के काशी में प्रथमोपदेश तक पहुँचा दिया। बुद्धचरित अत्युत्तम महाकाव्य है। इल में महाकाव्य के सब मुख्य मुख्य उपादानतत्व मौजूद है. इसमें प्रेम-कथा के दृश्य, नीतिशास्त्र लिखान्त और स्वाभामिक घटनाओं का वर्णन भी है। कसनीय कामिनियो की केलियां, गृह पुगेहत का सिद्धार्थ को उपदेश, सिद्धार्थ का सकर-ध्वज के साथ संग्राम, ये सब दृश्य बड़ी विशद और रमणीय शैलीले अङ्कित किए गए हैं। यपि कवि बौद्ध था, तथापि काव्य पौराणिक तथा अन्ध-हिन्दूकथा-प्रन्थीम परामों से पूर्ण है। निदर्शनार्थ, इसमें पाठक इन्द्र, माया, लहसाच इंद्र, पशु, इक्षिवान, वाल्मीकि, कोशिक, सगर, स्कन्द के नाम, मान्धाता, नहुप, पुरुरवा, शिव-पार्वती की कथाहर और अतिथि १ इस बारे में एक कहानी है। कहा जाता है कि कानिक अश्वघोष को पाटलिपुत्र से ले गया था। उसे कनिष्क की प्रायोजित प्रौद्धी की परिषद् का उपप्रधान बनाया गया । फलतः महाविभाषा की रचना हुई जो चीनी भाषा में अब तक विद्यमान है और जिसे बौद्ध दर्शन का विश्वकोष कहा जाता है।
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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