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________________ 能 संस्कृत-साहित्य का इतिहास 협 के चोथा वर्णन के साथ समाप्त होता है । इससे फल कक्ष अथवा अनुपावशून्यता (Disproportion ) सुटित होता है । इम कालिदास से ऐसी आशा नहीं कर सकते । ऋतु वर्शन के उदाहरण ऋतुमंहार से न (३) अक्षकांराचार्यो ने देeevgn से दिये हैं । (४) मल्लिनाथ ने क बिदास के ऋतुसंहार पर नहीं । काव्यमय पर टीका लिखी है, (५) १०वीं शताब्दी से प्रारम्भ करके अनेक विद्वानों ने कालिदास के दूसरे ग्रन्थों पर टीकाए ं लिखी हैं, किन्तु ऋतुसंहार पर 9वीं शताब्दी तक कोई टीका नहीं लिखी गई । समर्थक पक्ष के लोगों का कथन है कि ऋतुसंहार कालिदास की श्रन्थकृतियों की अपेक्षा न्यून अशी का अवश्य है किन्तु यह इसलिए है कि कवि का यह प्रारम्भिक प्रयत्न है। टेनिसन और बेटे तक की वादिम और अन्तिम रचनाओं में ऐसा ही भारी अन्तर्वैषम्य देखा जाता है । इससे इस बात का भी समाधान हो जाता है कि धालंकारिकों ने ऋतु संहार की अपेक्षा रघुवंश में से अद्धरण देना क्यों पसंद किया ? ऋतुसंहार को सरल समझ कर ही मल्लिनाथ या किसी अन्य टीकाकार ने इस पर टीका लिखने की भी श्रावश्यकता नहीं समझी। किसी भी प्राचीन विद्वान् ने इसके कालिदास कृत होने में कभी सन्देह नहीं किया साथ ही यह भी संभव जाना पडता है कि वरभट्ट को इस काव्य का पता था और उसने मन्दसोर प्रशस्ति ( २३० वि० ) इसी के अनुकरण पर लिखी थी । ( ग ) मेघदूत के बारे में पता लगता है कि इसके प्राचीनतम टीकाकार वल्लभदेव को केवल १११ पचों का पता था, किन्तु मल्लिनाथ की टीका में ११८ पद्य हैं । ऐसा प्रतीत होता है कि विशेष करके उत्तारा के कुछ पद्य प्रक्षिप्त है । (घ) रघुवंश के बारे में हिसबैंड (Hillebrandt ) का 'काशिदास '
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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