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________________ १०४ संस्कृत साहित्य का इतिहास स्मथित हो जाते हैं। पार्वती शिस के सामने आती है और शिक्षका धैर्य कुछ परिलुप्त हो जाता है। समाधि तोड़कर शिम ने देखा तो सामने कामदेव को अधिज्यधन्ददा पाया। बस फिर क्या था! तस्कान ऋद्ध शिव का तृतीय नेत्र खुखा और उसमें से निकली हुई 'अग्नि-ज्वाला ने पल के अन्दर-अन्दर कामदेव को भस्म कर दिया (३ य सर्ग) हति को अपने पति कामदेव का वियोग असह्य हो गया । वह अपने पति के साथ सती हो जाने का निश्चय करती है। सलंत उसे धैर्य बंधाता है पर उसका क्षोभ दूर नहीं होता ! इतने में आकाशवाणी होती है कि जब पार्वती के साथ शिछ का विवाह हो जाएगा। तब तेरा पति पुनहग्जीवित हो जायगा। इस काशवाणी को सुनकर रति ने धैर्य धारण किया। वह उत्सुकता से पति के पुनरुज्जीवन के शुभ दिन की प्रतीक्षा करने लगी ( चतुर्थ मर्ग)। अपने प्रथरमों में असफल होकर पाती ने अब तप के द्वारा शिव को प्रस करने का निश्चय किया । माता ने बेटी को तप से विरत रहने की बहुत प्रेरणा की, किन्तु सब भ्यर्थ । पात: एक पर्वत के शिखर पर जाकर ऐसा भयंकर तप करने लगी कि उसे देख कर मुनि भी आश्चर्य में पड़ गए ! उसने स्वयं मिहने हुए पत्तों तक को खाने से निषेध कर दिया और वह केवल अयाचित प्राप्त जल पर ही रहने लगी। उसके इस तप को देख कर शिव से न रहा गया। वे ब्राह्मण ब्रह्मचारी का रूप मनाकर उसके सामने आए और पार्वती की पति-भक्ति की परीक्षा लेने के लिए शिव की निन्दा करने लगे । पार्वती ने उचित उत्तर दिया और कहा कि तुम शिव के यथार्थ रूप से परिचित नहीं हो । महापुरूषों की निन्दा करना ही पाप नहीं है। प्रत्युत निन्दा सुनना भी पाप है यह कहते हुए पार्वती ने वहाँ से चल देना चाहा। तब शिव ने यथार्थ रूप प्रकट करके पार्वती का हाथ पकड़ लिया और कहा कि मैं श्राज से तप क्रीत तुम्हारा दास हूँ (पन्धम सर्ग) अरुन्धती के साथ समर्षि पार्वती के पिता के पास आए और घर की प्रशंसा करने समे । पित
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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