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________________ अध्याय ६ कालिदास (१६) ईसापूर्व को प्रथम शताब्दी में संस्कृत का पुनरुज्जीवन । जैसा भागे चल कर बताया जायगा, अश्वोष संस्कृत का बहुत बड़ा कवि था । वह बौद्ध भिक्षु और महायान सदावलम्बी था । बह afro ( ई० की प्रथम शताब्दी ) का समसामयिक था। उसने बौद्ध धर्म के कई पाली - प्रमथों पर संस्कृत टीकाएँ लिखी हैं। अपने धर्म-सिद्धातों के प्रचार के लिए वौद्ध प्रचारकों को भी संस्कृत का प्रयोग करना पड़ा, इससे अनुमान होता है कि ईसवी सन् से पूर्व ही संस्कृत का पुनरुज्जीवन अवश्य हुआ होगा । ऐसा प्रतीत होता है कि अशोक के बाद कोई ऐसा प्रबल राजनैतिक परिवर्तन हुआ जिसका विशेष महायान मम्बी भी नहीं कर सके और कव जैसी कुछ राजशक्तियों का प्रभुत्व हुआ और उन्होंने संस्कृत को पुनः सर्व प्रिय बनाया । तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालय का प्रभाव दूर तक फैल रहा था। पता लगता है कि पुष्यमित्र ने ई० पू० की द्वितीय शताब्दी में साम्राज्य के केन्द्र में अश्वमेधयज्ञ किया था । इस काल में होने वाले पतन्जलि ने अपने काल के कई प्रन्थों का उल्लेख किया है। विशालकाय महाभारत का सम्पादन भी इसी काल में हुआ। पथवद स्मृ
SR No.010839
Book TitleSanskrit Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Agrawal, Lakshman Swarup
PublisherRajhans Prakashan
Publication Year1950
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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