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________________ चित्रालकार के केवल चार ही भेदों का उल्लेख कर उसे उपेक्षित कर दिया था किन्तु अजितसेन ने पुन चित्रालकार के प्रति विशेष समादर भाव प्रस्तुत किया और पूर्वाचार्यों की अपेक्षा इस्के भेदों का भी विस्तार किया । इनके अनुसार चित्रालकार के निम्नलिखित भेद किए गए हैं । in व्यस्त, 2) समस्त, 3 द्वि व्यस्त, 4 द्वि समस्त, 5 व्यस्तसमस्त, 6 द्वि व्यस्त-समस्त, 7 द्वि समस्तक-सुव्यस्त, 8 एकालापम्, 9 भिन्नक, 10 भेद्य-भेदक, 110 ओजस्वी, 12 सालकार, 130 कौतुक, 140 प्रश्नोत्तर, 15 पृष्टप्रश्न, 16 भग्नोत्तर, 118 आधुत्तर, 19 मध्योत्तर, 20f अपलुत, 21 विषम, [220 वृत्त, 23 नामाख्यातम, 24 तार्किक, 1250 सौत्र, 26 शाब्दिक, 27 शास्त्रार्थ 280 वर्गोत्तर, 290 वाक्योत्तर, 1300 श्लोकोत्तर, 318 खण्ड, 32 पदोत्तर, 330 सुचक्रक, 34, पद्म, 1350 काकपद, 36 गोमूत्र, 37 सर्वतोभद्र, 138 गत-प्रत्यागत, 390 वर्द्धमान, 1400 हीयमानाक्षर, 411 श्रृखल्य और 420 नागपाशक ये शुद्ध चित्रालंकार हैं।' आचार्य अजितसेन द्वारा निरूपित चित्रालकारों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है । प्रश्नोत्तरश्रित चित्र, 2 चक्रादि लिपि क्न्धाश्रित चित्रालंकार तथा 13 प्रहेलिकाश्रित चित्रालकार । उपर्युक्त चित्रालकारों के भेदों में स्ख्या एक व्यस्त से सख्या बत्तीस पदोत्तर तक के भेद प्रश्नोत्तराश्रित है क्यों कि इनमे कही व्यस्तरूप में, कहीं समस्त रूप मे, कहीं अन्य रूपों मे प्रश्न और उसके उत्तर की चर्चा की जाती है। सुचक्र से नागपाश तक दस भेदों को लिपिबन्धाश्रित स्वीकार किया गया है क्योंकिइसकी सरचना चक्र, पदम, काकपदापि चित्रों पर आश्रित है । प्रहेलिकाश्रित चित्र प्रहेलिकाओं पर आश्रित है । आचार्य अजित सेन ने चित्रालकार के 42 भेदों को शुद्ध चित्र के रूप में स्वीकार किया है और प्रहेलिकाओं को इससे भिन्न बताया है किन्तु प्रहेलिकाओं का निरूपण भी चित्रालकार निरूपण के परिच्छेद मे ही किया है तथा प्रहेलिकाओं के अन्तर्गत भी छत्र-बन्धादि की चर्चा की है जो वस्तुत चित्र से अभिन्न नहीं कहे जा सकते । अ०चि0 - 2/3 - 8 -
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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