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________________ स्थान :- आचार्य अजितसेन दक्षिण भारतीय विद्वान् रहे है I क्योंकि विजयवर्णी ने राजा कामिराय के निमित्त 'श्रृंगारर्णवचन्द्रिका' ग्रन्थ लिखा है I सोमवशी कदम्बों की एक शाखा वगवश के नाम से प्रसिद्ध हुई । दक्षिण कन्नड जिले तुलु प्रदेश के अन्तर्गत वगवाडपर इस वंश का राज्य था । बारहवीं - तेरहवीं शती के तुलुदेशीय जैन राजवशों यह सर्वमान्य सम्मान प्राप्त किए हुए था । इस वश के एक प्रसिद्ध नरेश वीर नरसिह वगराज 01156 - 1208 ई० के पश्चात् चन्द्रशेखरवग और पाण्ड्यवग ने क्रमश राज्य किया । तदनन्तर पाण्ड्यवग की बहन रानी विट्ठलदेवी 1239-44 ई0 राज्य की सचालिका रही । सन् 1245 मे इस रानी विट्ठलम्बाका पुत्र उक्त कामिराय प्रथमवगनरेन्द्र राजा हुआ । विजयवर्णी उसे गुणार्णव और राजेन्द्रपूजित लिखा है । प्रशस्ति में बतया है - स्थाद्वादधर्मपरमामृतदत्तचित्त सर्वोपकारिजिननाथपदाब्जभृग । कादम्बवशजलराशिसुधामयूख श्रीरायबगनृपतिर्जगतीह जीयात् ।। गर्वारूढ विपक्षदक्षबलसघाताद्भुताडम्बरा मन्दोद्गर्जनघोरनीरदम हासदो ह झञ्झानिल । प्रोद्यद्भानुमयूखजालविपिनव्रातानलज्वालसा - दृश्योद्भासुरवीर विक्रमगुणस्ते रायवगोद्भव ।। कीर्तिस्ते विमला सदा वरगुणा वाणी जयश्रीपरा लक्ष्मी सर्वहिता सुख सुरसुख दान निधान महत् । -
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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