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________________ पर मम्मट का स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होता है । आचार्य विश्वनाथ ने भी मम्मट के ही मत का अनुसरण किया है ।' आचार्य सघरक्षित के अनुसार गुण और अलकार से युक्त सदोष कन्या की भाँति कविता भी आदरणीय नहीं होती 12 अतएव प्रयत्नपूर्वक दोषों से बचने के लिए यत्न करना चाहिए । दोषों के अभाव मे कविता स्वय गुणवती हो जाती है । भेद-प्रभेद. काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों मे दोषों की सर्वप्रथम चर्चा भरत के नाट्यशास्त्र में की गयी है । उन्होंने निम्नलिखित दस काव्य दोषों का निरूपण किया है . गूठार्थ अर्थान्तर, अर्थहीन, भिन्नार्थ, एकार्थ अभिप्लुतार्थ, न्यायादपेत, विषम, विसन्धि तथा शब्दच्युत । इन दोषों में से परवर्ती आचार्य भामह ने एकार्थ दोष, अर्थहीन दोष और विसन्धि दोष को ग्रहण किया तथा अपार्थ दोष को अर्थहीन दोष के रूप में स्वीकार किय । शेष दोषों की उदभावना इन्होंने स्वय की जो इस प्रकार है - 1. अपार्थ, 2 व्यर्थ, 3 एकार्थ, 4 सशय, 5 अपक्रम, 6 शब्दहीन, 7. यतिभ्रष्ट, 8 मिन्नवृत्त, १ सिन्धि, 10. देशविरोधी, ।।. कालविरोधी, 12. कलाविरोधी, 13 लोक विरोधी, 14 न्याय विरोधी, 15. आगम विरोधी, 16. प्रतिज्ञाहीन, 17 हेतुहीन, 18. दृष्टान्तहीन । इसके अतिरिक्त नेय , क्लिष्ट तथा अन्यार्थ, अवाचक, अयुक्तिमत, गूढशब्दाभिधान, श्रुतिदुष्ट अर्थदुष्ट, कल्पनादुष्ट, श्रुतिकष्ट दोषों का भी उल्लेख किया है 16 रसापकर्षका दोषा । सा0द0, 7/1 सुबोधालकार, 1/14 वही, 1/15 नाOशा0, 17/88 काव्या0 4/1, 2 वही, प्रथम परिच्छेद ।
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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