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________________ 'विभाति सविता' - इस वाक्य के कहने पर रात्रि मे सविता का अर्थ जनक लिया जाएगा और दिन मे सूर्य अर्थ विद्वान् लोग काल से अर्थ निर्णय करते है । 'एतन्मात्राकुचा' इस वाक्य के कहने पर चेष्ठा से अर्थ का निश्चय होता है। साथ रहने के कारण वस्तु भी अर्थ का व्यजक मानी गयी है । दोष निरूपण: काव्य की उपादेयता तथा हृदयवर्जकता के लिए कवि को निर्दुष्ट होना आवश्यक है । कवि न होने से कोई भी व्यक्ति अधर्मी, व्याधित व दण्डनीय नहीं हो जाता, पर कवि होकर दुष्ट काव्य की सरचना करना उसके लिए अधर्म, व्यधि और दण्ड से भी अधिक दोषपूर्ण बताया गया है । यहाँ तक कि उसके लिए वह मृत्यु के समान है ।' दुष्ट काव्य के निर्माण से कवि उसी प्रकार से निन्दित होता है, जैसे दुष्ट पुत्र का पिता 12 अत कवि को दोषाभाव के प्रति सदा सावधान रहना चाहिए । आचार्य दण्डी के अनुसार दोष का लेशमात्र भी काव्य मे होना गर्हित बताया गया है, जिस प्रकार से मानव शरीर कुष्ठ के एक दाग से अशोभनीय तथा निन्दनीय हो जाता है, ठीक उसी प्रकार से दोषों की योजना से काव्य भी निन्दनीय हो जाता है । अग्निपुराण मे दोष को काव्य - स्वाद में उद्वेगजनक तत्व के रूप में स्वीकार किया गया है । भामह, दण्डी तथा अग्निपुराण के पश्चात् आचार्य मम्मट ने दोषों का वैज्ञानिक विवेचन किया है । इनके, अनुसार मुख्यार्थ का अपकर्ष ही दोष है । मुख्यार्थ से तात्पर्य है - 'रस' से । कयोंकि काव्य में रस ही आत्म के रूप में प्रतिष्ठित रहता है । अत. जहाँ रसास्वाद मे बाधा उपस्थित हो, वहाँ दोष की स्थिति अवश्यंभावी हो जाती है । आचार्य अजितसेन ने काव्यापकर्षक हेतु को दोष के रूप में स्वीकार किया है । इस प्रकार अजितसेन भाकाव्याo, I/12 वही, ।/।। काव्यादर्श - 1/7 उद्देगजनको दोष सभ्यानां स च सप्तधा । अग्नि पु0, 1/347 क) मुख्यार्थी हतिर्दोषो रसश्च मुख्यस्तदाश्रयाद्वाच्य । उभयोपयेगिन. स्यु शब्दाद्यास्तेन तेष्वपि स ।। का0प्र0 7/46 ख) काव्यहीनत्वहेतुर्यो दोष शब्दार्थमोचर. । अचि0, 5/190 का पूर्वाद्ध
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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