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________________ को जो गुणों से अभिन्न है । यदि गुणों एव रीतियों की स्थिति को अविनाभाव सम्बन्ध से स्वीकार कर लिया जाए तो यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि भामह एव दण्डी के पूर्ववर्ती आचार्य भरत भी रीतियों को स्वीकार करते है क्योंकि भरत ने भी दस गुणों को स्वीकार किया है जो कालान्तर में दण्डी के चिन्तन का मार्ग, रीति विषयक आदिम स्रोत क्ना ।' रुद्रट द्वारा निरूपित रीतियों के नाम पाचाली, लाटीया, गौडीया तथा वैदी । वामन की रीतियों से अभिधान साम्य होने पर भी दोनों मे मौलिक अन्तर है । वामन की रीतियाँ गुपाश्रित है किन्तु रुद्रट की रीतियाँ गुणों पर आधारित न होकर सामाजिक योजनाओं पर अवलम्बित है। आचार्य अजितसेन ने भी सामाजिक सरचना पर आधारित रीतियों का विवेचन किया है । इन्होंने गुप सहित सुगठित शब्दावली से युक्त सन्दर्भ को रीति की अभिधा प्रदान की है 13 सस्कृत के अन्य आचार्यों ने विशिष्ट पद रचना को रीति कहा है । इन्होंने भी वामन के समान वैदभी, गौडी तथा पाचाली रीति का उल्लेख किया है। वैदर्भी काठिन्य से रहित अल्प स्मास वाली रचना को वैदर्भी रीति कहा गया है 14 120 गौडी. ओज और कन्तिमुप से सम्पन्न समास बहुला संरचना को गौडी रीति के रूप में मान्यता दी गयी है 15 पांचाली: वैदर्भी और गैड़ी के समन्वयात्मक वर्णन को पाचाली रीति कहा गया है । - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - एक भा0, काव्या0, 1/32 खि का0द0, 1/40 रू0, काव्या0, 259 गुणसश्लिष्टशब्दौरसद रीतिरिष्यते । त्रिविधा सेति वैदर्भी गोडी पाञ्चालिका तथा ।। अ०चि0, 5/134 अचि0, 5/135 ओज कान्तिगुफा पूर्णयासा गोडी मता यथा ।। अ०चि0, 5/137 का पूर्वाद्ध उत्तरीत्युभयात्मा तु पाञ्चालीति मता यथा । वही पृ0-260
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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