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________________ वर्ण देवता शृगार हास्य श्याम चन्द्रमा के समान विष्णु गणपति शुभ्र कपोत यमराज करुप रौद्र रक्त रुद्र वीर गौरकान्ति इन्द्र भयानक महाकाल वीभत्स काल नील पीत अद्भुत शान्त ब्रह्मा शान्तमूर्ति परादि ब्रह्म श्वत - - - - - - - - -- - - - - - - - - - - - - - - - - - - - के क्षेत्र में भी आचार्य अजितसेन का रस तथा रसावयव के वर्णन महत्वपूर्ण योगदान रहा है । रीति - काव्यशास्त्र में रीति शब्द का सर्वप्रथम उल्लेख आचार्य वामन ने किया है और उसे काव्य की आत्मा के रूप में स्वीकार किया है । उन्होंने विशिष्ट पद, रचना अर्थात् शब्दों की विशिष्ट व्यवस्था अथवा नियोजन को रीति कहा है। यह वैशिष्ट्य गुणों में होता है उन्होंने वैदी, गौडी, और पाचाली तीन रीतियों का उल्लेख किया है तथा यह भी बताया है कि वैदभी रीति में सभी दस गुण होते हैं गौडी में कन्ति गुण तथा पांचाली में माधुर्य और सौकुमार्य गुण आते हैं । इसके अतिरिक्त इन्होंने रीतियों का सम्बन्ध देशविशेष से भी बताया है । किन्तु काव्य को किसी देश से सम्बन्धित करना असमीचीन प्रतीत होता है । पूर्ववर्ती आचार्य भामह एव दण्डी ने भी रीतियों को स्वीकार किया है किन्तु उन्होंने कहीं पर रीति शब्द का उल्लेख नहीं किया तथापि उनके द्वारा स्वीकृत वैदर्भ एव गौड मार्ग जो गुणों पर ही आधारित है एव वामन की रीतियों - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - -- - रीतिरात्मा काव्यस्य । विशिष्ट पद रचना रीति । विशेषो नुपात्मा । काव्या0 सू0, 1/1/6 से ।।,12,130 वही, सूo 1/2 2
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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