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________________ व्याख्या में कोई मतभेद नहीं है तथापि "सयोगात्" व 'निष्पति' पर्दों की व्याख्या करने में विभिन्न आचार्यों ने विभिन्न रूप से अपने-अपने विचारों को व्यक्त किया है। इस सम्बन्ध मे अन्तिम प्रमाणिक व्याख्या अभिनव गुप्त की स्वीकार की जाती है। उन्होंने स्योगात् पद का अर्थ व्यग्य व्यज्यक भावार्थ और निष्पत्ति का अर्थ अभिव्यक्ति करके रस को व्यग्य माना है । इन्होंने अपनी व्याख्या को प्रस्तुत करने के पूर्व भट्ट लोल्लट, श्री शकुक तथा भट्टनायक के मत को प्रस्तुत किया । भरत सूत्र के प्रथम व्याख्याकार भीमासक भट्ट लोल्लट है इनके अनुसार स्योगात् पद का अर्थ उत्पाद्य उत्पादक भाव सम्बन्धात् है तथा निष्पत्ति का उत्पत्ति है । आचार्य भट्ट शकुक के अनुसार सयोगात् पद का अर्थ अनुमाप्य अनुमापक भाव सम्बन्धात् और निष्पत्ति का अर्थ अनुमिति है 12 आचार्य भट्ट नायक के अनुसार स्योगात् पद का अर्थ भोज्य भोजक भाव सम्बन्ध है तथा निष्पत्ति का अर्थ भुक्ति है । 3 भट्ट नायक ने भावकत्व तथा भोजकत्व रूप नवीन व्यापार की कल्पना की । जो परवर्ती आचार्यों को मान्य नहीं हुई क्योंकि भावना और भोग का समावेश व्यज्यक भाव मे हो जाता है । 4 व्यग्य । 2 3 - 4. - 5. त्रयंशायामपि भावनायाकार पीशे ध्वननमेव निपतति । भोगोपि --- आचार्य मम्मट के अनुसार विभाव, अनुभाव और व्यभिचारी भाव से अभिव्यक्त स्थायी भाव ही रस है 15 परवर्ती काल में विद्यानाथ, विश्वनाथ आदि लोकोत्तरोध्वननव्यापार एव मूर्धाभिषिक्त । का०प्र०, दा० सत्यव्रत सिह, पृ0 लिए मूल संस्कृत व्याख्या का०प्र०, पृ0 71 वही, पृ० 71 सO, सा०इति०, पृ० का०प्र०, सूत्र 43 ध्वन्यालोक, पृ० 65 - 70 66 ) मूल संस्कृत व्याख्या के
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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