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________________ रस का महत्त्व अनादि काल से प्रतिपादित है । अलकारशास्त्र में रस को सर्वोपरि स्वीकार किया गया है तथा इसे आत्मा के समकक्ष माना गया है ।' भरतमुनि ने रस पर विवेचन करते हुए लिखा है कि रस के बिना काव्य मे किसी अर्थ का प्रवर्तन नहीं होता । 2 अग्निपुराण के अनुसार वाग्वैदग्ध्य की प्रधानता होने पर भी काव्य के जीवातु के रूप मे रस को ही स्वीकार किया गया है 1 3 किसी अज्ञात कवि ने रस की प्रशसा में कहा है कि यदि काव्य में रस्सम्पत्ति है तो अलकार व्यर्थ है । यदि रस सम्पत्ति नहीं है तो भी अलकारों का कोई महत्त्व नहीं है । 4 आचार्य आनन्दवर्धन ने बताया कि महर्षि वाल्मीकि के हृदय में विद्यमान शोक ही श्लोक के रूप में परिणत हुआ । जिससे यह सिद्ध होता है कि मानव के हृदय में स्थित शोक ही श्लोक की उत्पत्ति का कारण है । 5 महाकवि भवभूति इसी मत के पोषक प्रतीत होते है । अत यह रस क्या है इस सन्दर्भ में चर्चा करना नितान्त अपेक्षित है । 1. आचार्य भरत के अनुसार विभाव, अनुभाव तथा सचारी भाव के योग से रस निष्पत्ति की चर्चा की गयी है । 7 यद्यपि भरत कृत रस सूत्र अत्यन्त सरल प्रतीत होता है तथापि विभिन्न व्याख्याओं के कारण यह बहुत ही क्लिष्ट हो गया है । इस रस सूत्र के विभाव अनुभाव और व्यभिचारी भाव शब्दों की 2 3 4 अध्याय 6 काव्य रस, दोष तथा गुणादि निरूपण сл 5 रस तथा रसावयव 6 7 सो वै स रस हयेवायं लब्ध्वा नन्दीभवति । तैत्ति० उप०, ब्रह्मानन्द वल्ली, अनु0-6 नहि रसादृते कश्चिदर्थ प्रवर्तते । ना०शा० अ० -6 वाग्वैदग्ध्यप्रधानेऽपि रस एवात्र जीवितम् । संस्कृत साहित्य का इतिहास, भाग - 2, कन्हैयालाल पोद्दार, पृ0-53 ध्वन्यालोक, 1/5 एकोरस करुण एव निमित्तभेदात् । उ०रा० अंक 3 विभावानुभावव्यभिचारिसयोगाद्रसनिष्पत्ति । ना०टा० अ० 46
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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